यह लेख शर्मिष्ठा नाम की एक 22 वर्षीय लड़की की गिरफ्तारी पर सवाल उठाता है और भारत में कानून के दोहरे मापदंडों पर प्रकाश डालता है.
शर्मिष्ठा का मामला: क्या कानून निष्पक्ष है?
लेख की शुरुआत इस बात पर जोर देने से होती है कि यह पोस्ट शर्मिष्ठा का समर्थन करने के लिए नहीं है, बल्कि उसके साथ हुई गिरफ्तारी के तरीके पर सवाल उठाने के लिए है. शर्मिष्ठा ने जो कुछ कहा था, वह गलत था, लेकिन सवाल यह है कि क्या उसके साथ जो कुछ हो रहा है, वह सही है?
बंगाल पुलिस की तत्परता पर सवाल
लेख पश्चिम बंगाल पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाता है, जो मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर 24 परगना में दंगों को नियंत्रित करने में विफल रहने पर हाईकोर्ट से फटकार खा चुकी है. यही पुलिस 1500 किलोमीटर का सफर तय करके गुरुग्राम आती है ताकि एक 22 वर्षीय लड़की को गिरफ्तार कर सके, जिसने पहले ही माफी मांग ली थी. यह सवाल उठाया जाता है कि क्या यह कानून की मर्यादा बनाए रखने के लिए किया गया, या फिर राज्य सरकार के एक बड़े वोट बैंक को खुश करने के लिए, ताकि यह संदेश दिया जा सके कि "हम तुम्हारे हैं सनम".
लेख इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि उसी राज्य के सांसद हिंदू धर्म को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियां करते हैं, भगवान शिव और शिवलिंग का मजाक उड़ाते हैं, लेकिन बंगाल पुलिस उन पर कोई कार्रवाई नहीं करती. यह दर्शाता है कि कानून धर्म और राजनीति का चेहरा देखकर बंट रहा है.
एक देश में दो कानून?
लेख में यह सवाल उठाया गया है कि क्या भारत में एक धर्म की भावनाओं को आहत करने पर सलाखें तैयार होती हैं, जबकि दूसरे धर्म के मामलों में तथाकथित "फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड एक्सप्रेशन" का हवाला दिया जाता है. उदाहरण के तौर पर, तृणमूल कांग्रेस की सांसद सायनी घोष द्वारा शिवलिंग पर की गई विवादास्पद टिप्पणी का उल्लेख किया गया है, जिसके खिलाफ शिकायत दर्ज होने के बावजूद कोई गिरफ्तारी नहीं हुई. इसी तरह, महुआ मोइत्रा और राणा अय्यूब जैसे कई नामों का जिक्र है, जिनके सोशल मीडिया पोस्ट ने कई लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत किया है, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसके विपरीत, शर्मिष्ठा, जो न तो राजनेता है और न ही प्रभावशाली, और जिसने सार्वजनिक रूप से माफी मांगी है, उसे गिरफ्तार करने के लिए 1500 किलोमीटर का सफर तय किया जाता है.
यह सवाल उठाया जाता है कि क्या कुछ जगहों पर धार्मिक भावनाएं दूसरों की तुलना में अधिक संवेदनशील हैं, या फिर देश का कानून धर्म देखकर चल रहा है.
धमकियों पर खामोशी और कानून का दुरुपयोग
लेख में इस बात पर भी चिंता व्यक्त की गई है कि शर्मिष्ठा को बलात्कार और जान से मारने की धमकियां मिलीं, लेकिन पुलिस उन लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है. यह सवाल उठाया जाता है कि क्या धमकी देना तब तक अपराध नहीं है, जब तक शिकार एक साधारण लड़की न हो.
ममता बनर्जी सरकार का यह कहना कि शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी एक कानूनी प्रक्रिया है, पर भी सवाल उठाए गए हैं, क्योंकि उनके ही सांसदों द्वारा हिंदू भावनाओं का अपमान करने पर कोई गिरफ्तारी नहीं हुई. यह सवाल किया जाता है कि क्या यह एक समुदाय को संदेश देने की कोशिश है, और क्या शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी एक चेतावनी है कि बोलने से पहले सौ बार सोचो, क्योंकि माफी का कोई मतलब नहीं अगर सत्ता अपराध मान ले.
लेख में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत का संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, लेकिन इसकी एक सीमा होनी चाहिए. किसी को भी बेवजह किसी भी धर्म पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए. हालांकि, यह भी सवाल उठाया गया है कि क्या यह आजादी अब शर्तों पर कैद हो रही है, और क्या जेल कौन जाएगा यह इस बात से तय होगा कि व्यक्ति किस विचारधारा से आता है या किस धर्म पर बोल रहा है.
सबक और आगे का रास्ता
यह घटना शर्मिष्ठा और उसके परिवार के लिए एक सबक है कि सोशल मीडिया पर कुछ भी बोलने से पहले सोच-समझकर बोलना चाहिए, क्योंकि एक शब्द आपकी जिंदगी बर्बाद कर सकता है. धार्मिक मुद्दों पर विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी गई है.
अंत में, यह लेख सरकारों से अपील करता है कि गलतियों की सजा धर्म देखकर न दी जाए, बल्कि फैसले निष्पक्ष रखे जाएं. शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी सिर्फ एक मामला नहीं है, बल्कि कानून, धर्म और सत्ता की राजनीति की एक कड़ी सच्चाई है, जो सवाल उठाती है कि हमारा सिस्टम क्या सभी को न्याय दे रहा है. यह सवाल भी पूछा जाता है कि धार्मिक भावनाओं की रक्षा हर धर्म के लिए एक जैसी क्यों नहीं है, और अभिव्यक्ति की आजादी सत्ता की कैद में क्यों है.
लेख इस बात पर जोर देता है कि यह मामला हर उस नागरिक का है जो चाहता है कि कानून का तराजू सबके लिए बराबर हो. यह हमें पूछने पर मजबूर करता है कि क्या वाकई हम निष्पक्ष भारत की तरफ बढ़ रहे हैं या सिर्फ सियासत के गुलाम बन रहे हैं. इस पूरे प्रकरण में, मुख्य रूप से कानून की निष्पक्षता, सत्ता की प्राथमिकताएं, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल उठाए गए हैं, और यह भी पूछा गया है कि क्या भारत में एक देश में दो कानून चल रहे हैं.