देशहित सर्वोपरि: एक नया नज़रिया
पहलगाम आतंकवादी हमले और भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच असदुद्दीन ओवैसी, उमर अब्दुल्ला और शशि थरूर के बयानों ने पूरे देश में एकता का नया संदेश दिया है. इन नेताओं ने यह साबित कर दिया कि जब देश पर संकट आता है, तो राजनीति, धर्म और विचारधारा से ऊपर उठकर राष्ट्र के लिए एक होना कितना ज़रूरी है.
जब सरहदों से बारूद की गंध आने लगे और देश की मिट्टी पर खतरा मंडराने लगे, तब सवालों की नहीं, एकजुटता की ज़रूरत होती है. यह वक्त न नेताओं का होता है, न पार्टियों का, न धर्म का, न विचारधारा का, यह वक्त होता है सिर्फ़ और सिर्फ़ तिरंगे का. इस बार भारत के कुछ नेताओं ने ऐसा कमाल कर दिखाया है कि हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो गया है. असदुद्दीन ओवैसी, उमर अब्दुल्ला और शशि थरूर ने यह बता दिया कि नेतागिरी चमकाने के तो ढेरों मौके मिल जाएँगे, लेकिन अभी वक्त है देश के लिए खड़े होने का. इन तीनों ने संकट की घड़ी में यह बताया कि राजनीति में भी देशभक्ति की लौ जलती रहती है, और वो लौ इतनी तेज़ है कि सारी दुनिया आज उसे सलाम कर रही है. इसका ज़िक्र इसलिए ज़रूरी है क्योंकि हम उस देश में रहते हैं जहाँ राजनीति अक्सर जाति, धर्म और वोट बैंक का शतरंज बन जाती है. लेकिन इन तीनों नेताओं ने साबित किया कि जब बात देश की है, तो सारी दीवारें ढह जाती हैं.
असदुद्दीन ओवैसी: पाकिस्तान को सीधा जवाब
असदुद्दीन ओवैसी ने तो सीना ठोककर ऐलान किया कि भारत का मुसलमान सच्चा सिपाही है और हमें पाकिस्तान के सर्टिफिकेट की ज़रूरत नहीं है. अक्सर लोग उन्हें ग़लत समझ लेते हैं, लेकिन 2025 के पहलगाम आतंकवादी हमले पर भारत-पाकिस्तान तनाव पर उन्होंने जो बातें कहीं, वो हर भारतीय के दिल को छू गईं. उनकी आवाज़ में जोश था, सच था, और भारत के लिए बेपनाह मोहब्बत थी. बिना हिचके, बिना संकोच किए, उन्होंने पाकिस्तान का नाम लेकर कहा कि पाकिस्तान वो मुल्क है जिसकी ज़मीन से आतंक का धंधा चलता है. जब तक यह बंद नहीं होगा, शांति की बातें बेकार हैं. उन्होंने पहलगाम हमले के आतंकवादियों को सज़ा देने की मांग की और इस बात का भी ज़िक्र किया कि आतंकवादियों ने धर्म और पहचान देखकर मारा, और उन आतंकवादियों को मार गिराना हमारी ज़िम्मेदारी है.
इस बार ओवैसी ने सरकार और सेना के कदमों की तारीफ़ की, कहा कि हमारी सेना आतंकवादियों को सही जवाब दे रही है. उन्होंने पाकिस्तान के पाखंड को भी बेनकाब किया. पाकिस्तान ने दरअसल अपने सैन्य ऑपरेशन को 'बुनियान अल मसरूस' नाम दिया था, जो कुरान से लिया गया था. ओवैसी ने इसे झूठ का ढोंग क़रार दिया. उन्होंने कहा कि ये वही लोग हैं जिन्होंने 9/11 हमले के बाद मुसलमानों को अमेरिका में बेचा, पुंछ में मासूमों को मारा, बलूचिस्तान में ज़ुल्म किए. इन्हें इस्लाम की बात करने का कोई हक़ नहीं है. उनकी ये बातें पाकिस्तान की दोहरी नीति को दुनिया के सामने ला रही हैं. ओवैसी यहीं नहीं रुके, उन्होंने पाकिस्तान की बदहाली पर भी खूब तंज कसा. कहा कि जो IMF से एक बिलियन डॉलर की भीख मांग रहे हैं, जो आधिकारिक तौर पर भिखारी बन गए हैं, वो आतंक का धंधा चलाते हैं. उन्होंने उन्हें "इंटरनेशनल मिलिटेंट फंड" कहा. उन्होंने अमेरिका पर भी सवाल उठाया, कहा कि अमेरिका, जर्मनी, जापान जैसे देश एक आतंकवादी देश को इतने पैसे क्यों देते हैं? तुर्की से भी कहा कि जब तुम अपने राष्ट्र की सुरक्षा के लिए दुश्मन पर हमला करते हो, तब तुमने नहीं सोचा, भारत जब कर रहा है तो भारत पर सवाल क्यों खड़े करते हो?
ओवैसी का तुर्की और पाकिस्तान पर सवाल उठाना इस देश में लोगों को ताक़त देता है क्योंकि कई बार लोग धर्म के नाम पर नरम हो जाते हैं, लेकिन जब ओवैसी जैसा नेता इतनी मज़बूती से, इतने तीखे तंज में यह बात कहता है कि मुसलमान हम बाद में हैं, पहले हम भारत के वासी हैं और भारत सबसे पहले आता है, तो फिर इस देश में युवा लड़के जो ओवैसी को सुन रहे हैं, उन्हें भी एक नया जोश मिलता है और देशभक्ति की भावना से वो भी लबरेज़ हो जाते हैं. बिहार के मोतिहारी में तिरंगे की पगड़ी पहनकर ओवैसी ने हुंकार भरी. कहा कि मैं भारत से मोहब्बत करता हूँ, मेरी आलोचना वोट की सियासत के लिए नहीं सच्ची देशभक्ति के लिए है. ओवैसी ने इस देश के मुसलमानों से कहा कि अगर जिहाद करने का शौक है तो फिर आतंकवाद के खिलाफ़ जिहाद करो. भारतीय मुसलमानों के सामने जब ओवैसी ने ये बातें कहीं तो यह देश को एकजुट करने वाली बात थी, और इसीलिए आज हम कह रहे हैं कि ओवैसी साहब को सलाम है.
ओवैसी ने भारत के 23 करोड़ मुसलमानों से कहा कि सुनो, हम वो मुसलमान हैं जिन्होंने दो राष्ट्र के सिद्धांत को ठुकराया, लोकतांत्रिक भारत चुना. हम पाकिस्तान नहीं हैं. पाकिस्तान वो है जो दुनिया भर में ज़ुल्म करता है, बलूचिस्तान में मुसलमानों को मारता है. हम उनकी तरह नहीं हैं, हम अलग हैं.
उमर अब्दुल्ला: कश्मीर की आवाज़
ओवैसी की तरह एक और नेता उमर अब्दुल्ला. उन्होंने भी जो कुछ कहा, वो भारत को मज़बूत करने वाला था. जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कश्मीर को लेकर ऐसी आवाज़ उठाई जो इस्लामाबाद तक को दहलाने वाली थी. जिस संयम, जिस ताक़त, जिस संवेदनशीलता से उन्होंने बात रखी, यकीन मानिए, इससे भारत को मज़बूती मिली. कई बार दुनिया कश्मीर को भारत से अलग करके देखती है, कई बार दुनिया कश्मीर के लोगों की बातों को हाईलाइट करने की कोशिश करती है, और ऐसे में उमर अब्दुल्ला ने जो बातें कहीं वो भारत को मज़बूत कर रही थीं, पाकिस्तान को कमज़ोर कर रही थीं, क्योंकि उमर अब्दुल्ला ने कश्मीर और भारत की आवाज़ बनते हुए पाकिस्तान को आड़े हाथों लिया और कहा कि साहब आप तो जांच करने से इंकार कर रहे थे, अब शहबाज़ शरीफ़ जांच की नौटंकी क्यों करते हैं? सीज फ़ायर को लेकर कहा कि यह अच्छा कदम है, काश पहले हुआ होता, जिंदगियां बच जातीं. लेकिन यह भी कहा कि शांति तभी मुमकिन है जब पाकिस्तान आतंकवाद पर सीमा पर रोक लगाएगा. कश्मीरियों की फ़िक्र करते हुए कहा कि कश्मीरियों की जान की हमें परवाह है और पाकिस्तान उसको लेना चाहता है.
सबसे बड़ी बात जो उमर अब्दुल्ला ने कही, वो थी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान को लेकर. आपको याद होगा, डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि कश्मीर के मसले पर फिर से बात की जाएगी. उमर अब्दुल्ला ने साफ़ लफ़्ज़ों में कह दिया कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है, इसे कोई बाहरी ताक़त मुद्दा नहीं बना सकती. उनकी यह बात कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा होने का गर्व दिखाती है और दुनिया को यह संदेश देती है कि कश्मीर भारत का है. उनकी यह बात दुनिया को एहसास कराती है, कश्मीर भारत का है. उमर आगे बढ़कर कहते हैं कि कश्मीर के लोग शांति चाहते हैं, वह नहीं चाहते कि उनके बच्चे डर में जिएं. उनकी बातें कश्मीरियों के दर्द को देश तक पहुँचा रही थीं. उमर की आवाज़ ने न सिर्फ़ पाकिस्तान को जवाब दिया बल्कि कश्मीरियों को भी यह भरोसा दिया कि वो अकेले नहीं हैं. उनके शांति की अपील, जवाबदेही की मांग ने आज पूरे देश का दिल जीत लिया है. उमर अब्दुल्ला ने जो कहा वो कश्मीर और कश्मीरियत से आई वो आवाज़ थी जिसे पूरा देश आज महसूस कर रहा है.
जैसे कोविड के बाद कई सारी चीजें बेहतर हुईं, नदियाँ साफ़ हो गईं, आसमान नीले दिखने लगे, हवाएँ स्वच्छ आने लगीं, वैसे ही, दुर्भाग्यपूर्ण जो पहलगाम हमला हुआ, उसमें बहुत सारे दुख दर्द परेशानियाँ हमें मिलीं, लेकिन एक अच्छी चीज़ हुई कि सारा हिंदुस्तान जो है वो एक साथ इकट्ठा हो गया. वो कश्मीर जहाँ पर कई बार विरोध के लिए लोग निकलते थे, वहाँ पर आज हिंदुस्तान का झंडा पकड़े लोग निकल रहे हैं. लाल चौक पर जो तिरंगा लहर रहा है, वो बता रहा है कि भारत के दिल में कश्मीर है, और यह बात जब कश्मीर के मुख्यमंत्री कहते हैं, तो पाकिस्तान में इस्लामाबाद से लेकर दुनिया में जो भी भारत से कश्मीर को अलग करने की तमन्ना रखते हैं, उनके सीने पर मानो साँप लोट जाता है.
शशि थरूर: वैश्विक मंच पर भारत की आवाज़
यह कहानी तो उमर अब्दुल्ला और ओवैसी की थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंच पर शशि थरूर ने भी दुनिया में भारत की आवाज़ को बुलंद किया. शशि थरूर क्या कमाल की अंग्रेज़ी बोलते हैं, स्टाइल अच्छी है, बुद्धिमान व्यक्ति हैं. उन्होंने भारत की ताक़त दुनिया को दिखाई. पाकिस्तान के हर उकसावे का इतने स्मार्टली जवाब दिया कि शशि थरूर के लिए इज़्ज़त और बढ़ गई. ख़ास तौर पर जब बिलावल भुट्टो से कहा. बिलावल भुट्टो ने कहा था कि खूनखराबा खूब हो जाएगा. शशि थरूर ने बड़े स्मार्टली पलटवार किया कि भाई साहब, खूनखराबा जिसका ज़िक्र आप कर रहे हो, अगर यह होगा तो यह आपकी तरफ़ ज़्यादा होगा. भारत साज़िश नहीं रचता लेकिन जवाब ज़रूर देता है. उनकी यह बात भारत की दृढ़ता को दिखा रही थी.
सैन्य कदमों को लेकर क्या तारीफ़ की. बार-बार जब टीवी के एंकर भारत में भी शशि थरूर को पोक कर रहे थे और वह सुनना चाहते थे कि मोदी सरकार के ख़िलाफ़ शशि थरूर कुछ कह दें, शशि थरूर ने कहा कि 2016 में हमने पाकिस्तान को सबक सिखाया था, 2019 में कस के समझाया था, और इस बार जो किया है वो पाकिस्तान की नस्लों को याद रहेगा. यह ज़रूरी था उनके लिए. थरूर ने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर भारत के हमले को चतुर, सटीक और संयमित बताया. कहा, मैं हमेशा से कहता आया हूँ कि हमें कड़ा जवाब देना चाहिए लेकिन जंग से बचना चाहिए. उनकी यह सोच भारत की रणनीति को और ज़्यादा मज़बूत कर रही थी. उनके कॉलम में कारगिल युद्ध से लेकर 2025 तक भारत के आतंकवाद के खिलाफ़ लड़ाई को बयां किया गया. बताया कि भारत वो देश है जो ताक़त और संयम का बैलेंस रखता है, और उनकी इन बातों ने भारत के क़द को बड़ा मज़बूत कर दिया. इन सबके साथ थरूर ने सेना को लेकर भी एकजुटता दिखाई. कहा, हमारे जवान हमारा ग़ुरूर हैं और हम उनके पीछे खड़े हैं. वो जो भी कदम लेंगे हम उनके साथ हैं. थरूर ने दुनिया को बताया कि भारत आक्रामक नहीं, ज़िम्मेदार है. उनकी बातों ने पाकिस्तान के फेक न्यूज़ को ध्वस्त किया और भारत की एक मज़बूत शांतिप्रिय देश की छवि दुनिया के सामने पेश की. थरूर की चतुराई ने, थरूर की बातों ने वैश्विक मंच पर भारत को एक नई ऊँचाई दी और आज भारत का गर्व जो है वो और ज़्यादा बढ़ा है इनकी वजह से.
वाजपेयी की विरासत और वर्तमान नेताओं का दायित्व
इसलिए आज इन तीनों नेताओं को हम सलाम करते हैं. हालाँकि, इन तीनों नेताओं का जब हम ज़िक्र कर रहे हैं, तो हमें इतिहास में अटल बिहारी वाजपेयी साहब भी याद आते हैं. अटल बिहारी वाजपेयी साहब वो शख़्स जिन्होंने देशभक्ति को नए मायने दिए थे. 1971 में जब इंडिया-पाकिस्तान का युद्ध हुआ था और बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई चली थी, तब वाजपेयी साहब विपक्ष में थे, लेकिन इंदिरा गांधी की सरकार को पूरा समर्थन दिया था, और ये कहा था, "सरकारें आएँगी, जाएँगी लेकिन देश रहना चाहिए." यह बात बाद में उन्होंने जब वो प्रधानमंत्री बने तब संसद में भी कही थी. अटल बिहारी वाजपेयी भी उन लोगों में से थे जो देश की बात को हमेशा आगे रखते थे. आलोचना करते थे, लेकिन जहाँ पर साथ दिखने का वक़्त होता था, वहाँ पर वह बँटते नहीं थे और उनकी बातें भारतीयों को जोड़ती हैं. आज मौजूदा दौर में जब सोशल मीडिया पर छोटी-छोटी बातें सरकार को लेकर कोसी जाती हैं, तो वाजपेयी का कथन बार-बार गूँजता है कि देश विरोध का विषय नहीं, श्रद्धा का विषय है. यह सबक है कि संकट में सस्ती लोकप्रियता नहीं, एकता चाहिए. वाजपेयी की मिसाल आज भी हमें सिखाती है कि देश के लिए सियासत से ऊपर उठना पड़ता है और उनकी गरिमा ने हर भारतीय के दिल में उन्हें बसा रखा है.
वाजपेयी वाली झलक जो है वो इन तीनों नेताओं ने दिखाई जिसका असर भी दिखाई पड़ेगा, ख़ास तौर पर मुसलमानों पर इसका असर दिखाई पड़ेगा. ओवैसी, उमर अब्दुल्ला या थरूर की बातों ने आज भारत के मुसलमान नौजवानों में भी जोश भरा है. उनका संदेश साफ़ है कि यह देश तुम्हारा है और तुम इसकी बड़ी ताक़त हो. अक्सर इस देश में मुसलमान नौजवानों को अपनी वफ़ादारी साबित करने के लिए कहा जाता है, लेकिन जब इन नेताओं ने छाती चौड़ी करके इस देश को रीप्रेजेंट किया, तो मानो अप्रत्यक्ष तौर पर ही आज इस देश का हर मुसलमान यह समझ रहा है कि उसे किसी भी चिंटू-मिंटू को सफ़ाई देने की ज़रूरत नहीं है. वो भी भारत का है और भारत उसका है.
ओवैसी ने जब स्पष्ट किया कि हमने जिन्ना का रास्ता ठुकराया, हम टू-नेशन थ्योरी वाले नहीं थे, हम भारत के थे, हमने यह चुना यह हमारा भारत है, तो यह एहसास भारत को और मज़बूत कर रहा है. एकता की ताक़त को और ज़्यादा बढ़ा रहा है, बँटवारे के एहसास को कम करवा रहा है, और इस देश के मुसलमानों को सिखा रहा है कि उनकी पहचान उनकी ताक़त है, उनकी कमज़ोरी नहीं. वो डॉक्टर, इंजीनियर, जवान, शिक्षक बनकर इस देश को मज़बूत कर रहे हैं. मुख्यधारा से इस घटना ने और ज़्यादा जोड़ा और समाज को एक नई ताक़त दी.
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निष्कर्ष
कुल मिलाकर आज इन तीनों का हम शुक्रिया अदा करना चाहते हैं, इसलिए क्योंकि संकट की घड़ी में भारत को इन्होंने आगे रखा. यह संदेश भी हर भारतीय के लिए है कि हमारी ताक़त हमारी एकता है, और अगर हम साथ रहेंगे तो फिर साथ मिलकर भारत जीतता रहेगा. इस वक़्त सिर्फ़ एक शब्द गूँजना चाहिए, वो है भारत. न दल की दीवारें, न धर्म की खाइयाँ, न विचारधारा की जंग, सिर्फ़ तिरंगे की शान. जो इस घड़ी में देश के साथ खड़ा है वही सच्चा सिपाही है. जो सियासत में उलझा, यकीन मानिए, वो इतिहास के कूड़ेदान में जाएगा. ओवैसी, उमर अब्दुल्ला और थरूर ने बता दिया कि देशभक्ति शब्दों का खेल नहीं, कर्मों का आलम है. चलो तिरंगे को और ऊँचा लहराएँ, आओ एक होकर भारत की पुकार सुनें. जय हिंद, जय भारत!