पहलगाम हमला: वह खूनी साज़िश जिसकी जड़ें पाकिस्तान में हैं और आज भी गुनहगार आज़ाद घूम रहे हैं Pahalgam Attack Full Study

पहलगाम हमला: वह खूनी साज़िश जिसकी जड़ें पाकिस्तान में हैं और आज भी गुनहगार आज़ाद घूम रहे हैं


जम्मू-कश्मीर के शांत पहलगाम में हुए खूनी हमले की गूँज आज भी वादियों में सुनाई देती है. यह सिर्फ एक आतंकी वारदात नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा था, जिसकी परतें इतनी गहरी हैं कि इसका सीधा संबंध पाकिस्तान और उसकी सैन्य खुफिया एजेंसियों से जुड़ता है. चौंकाने वाली बात यह है कि इस नृशंस हमले को अंजाम देने वाले कई हाथ आज भी आज़ाद घूम रहे हैं. इस लेख में हम पहलगाम हमले की पूरी कहानी, इसके पीछे के चेहरों और पाकिस्तान की दोहरी नीति का पर्दाफाश करेंगे.

पहलगाम हमले का खौफनाक खाका

पहलगाम के पास बायसरन मैदान, जिसे अक्सर भारत का 'मिनी स्विट्जरलैंड' कहा जाता है, 22 अप्रैल को एक सुनियोजित आतंकवादी हमले का गवाह बना. यह कोई सामान्य फायरिंग नहीं थी; आतंकियों ने भीड़ को तीन तरफ से घेरकर एक सुनियोजित तरीके से हमला किया. हमले के तुरंत बाद, अमेरिकी कंपनी मैक्स टेक्नोलॉजीज ने पाकिस्तानी कंपनी बीएसआई के साथ अपनी साझेदारी तोड़ दी, जो इस हमले में गहरी साजिश की ओर इशारा करता है.

यह भी खुलासा हुआ कि हमला करने वाले पाकिस्तानी सेना के एसएसजी (स्पेशल सर्विस ग्रुप) पैरा कमांडो थे. उनके शवों के साथ मिली सेल्फी और वीडियो, जिसमें एक आतंकी को फिलिस्तीन के बारे में बोलने को कहा गया था, उनके पाकिस्तानी कनेक्शन का एक और बड़ा सबूत है. शुरुआती जांच में पता चला कि हमले की मूल योजना पहलगाम के बजाय किसी होटल पर हमले की थी, जिसे बाद में बदल दिया गया. हमले से पहले पहलगाम क्षेत्र की सैटेलाइट इमेज की मांग का अचानक दोगुना हो जाना भी सामान्य नहीं था. मास्टरमाइंड और उनका पाकिस्तानी लिंक पहलगाम हमले के पीछे कई नाम सामने आए हैं, जिन्होंने इस साजिश को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाई:


आदिल हुसैन ठोकर: कश्मीर से पाकिस्तान तक का सफर

अनंतनाग जिले के गुर गाँव का रहने वाला आदिल हुसैन ठोकर इस हमले का पहला आतंकवादी था. 2018 तक आदिल का नाम किसी भी भारत विरोधी गतिविधि से नहीं जुड़ा था, सिवाय इसके कि वह मारे गए आतंकियों के जनाज़े में शामिल होता था. अप्रैल 2018 में, उसने एग्जाम का बहाना बनाकर घर छोड़ा और कभी वापस नहीं आया. इसी महीने उसने उच्च शिक्षा के बहाने पाकिस्तान में स्टूडेंट वीज़ा के लिए आवेदन किया, जो उसे तुरंत मिल गया. मई 2018 में, वैध पासपोर्ट और वीज़ा के साथ वह अटारी-वाघा बॉर्डर के रास्ते पाकिस्तान पहुँच गया. पाकिस्तान पहुँचने के बाद आदिल ने अपने परिवार और कश्मीर के लोगों से संपर्क तोड़ दिया. उसी दिन वह लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के नेतृत्व से मिला और मुजफ्फराबाद के सवाई नाला (पीओके) में एलईटी के कैंप में उसकी आतंकी ट्रेनिंग शुरू हो गई.


पाकिस्तान और एफएटीएफ का दबाव

आदिल के पाकिस्तान पहुँचने के अगले महीने, जून 2018 में, पाकिस्तान को एफएटीएफ (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) ने ग्रे लिस्ट में डाल दिया. एफएटीएफ एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो टेरर फंडिंग की निगरानी करती है. ग्रे लिस्ट में आने से पाकिस्तान को आईएमएफ और विश्व बैंक जैसे संस्थानों से ऋण मिलना बंद हो गया, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था पर संकट आ गया. एफएटीएफ ने पाकिस्तान को लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों की फंडिंग रोकने और उन पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया.

हालांकि पाकिस्तान ने दुनिया को दिखाने के लिए कुछ छोटे-मोटे कदम उठाए, लेकिन 14 फरवरी 2019 को भारत में पुलवामा हमला हो गया. भारत ने उमर के खाते में पाकिस्तान से ₹10.43 लाख जमा होने जैसे सभी सबूतों को एकत्र करके एक डोजियर तैयार किया और एफएटीएफ सदस्य देशों (यूएस, फ्रांस, यूके) को भेजा. एफएटीएफ की पेरिस बैठक में पाकिस्तान को अंतिम चेतावनी दी गई कि अब अगर ऐसा कुछ हुआ तो उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया जाएगा.

अनुच्छेद 370 और टीआरएफ का उदय

इस दबाव के कारण पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद की गतिविधियां धीमी पड़ गईं. लेकिन 5 अगस्त 2019 को भारत ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया. इससे पाकिस्तान चारों तरफ से फंस गया. सैन्य कार्रवाई का विकल्प नहीं था, और एफएटीएफ की नज़र उसकी प्रॉक्सी संगठनों पर थी.

इस स्थिति से निपटने के लिए, पाकिस्तान ने एक नई रणनीति बनाई. एलईटी के मुख्यालय मुरीदके में कई बैठकें हुईं और कश्मीर में अपनी लड़ाई जारी रखने के लिए एक नया आतंकवादी संगठन बनाया गया: द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF).

टीआरएफ: चेहरा बदला, काम वही

टीआरएफ का उद्देश्य एक "क्लीन लोकल कश्मीरी ग्रुप" का भ्रम पैदा करना था, ताकि पाकिस्तान का नाम सीधे तौर पर सामने न आए. हालांकि, इसका पूरा ऑपरेशन पुराने एलईटी और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों के हाथों में ही था. टीआरएफ ने तहरीक-ए-मिल्लत-ए-इस्लामिया, गजनवी हिंद, हिजबुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा के कुछ लोगों को मिलाकर भर्ती शुरू की.


पहलगाम हमले का असली मास्टरमाइंड: हाशिम मूसा

इन भर्तियों में एक नाम बेहद महत्वपूर्ण है: हाशिम मूसा. यह पाकिस्तान सेना का एक एसएसजी पैरा कमांडो है, जिसे उसकी सेवा समाप्त करके एलईटी को "लोन" पर दिया गया था. एनआईए की शुरुआती जांच और मीडिया रिपोर्टों ने इस बात की पुष्टि की है कि हाशिम मूसा ही पहलगाम हमले का असली मास्टरमाइंड था. ओजीडब्ल्यू नेटवर्क: आतंकवाद का रीढ़

टीआरएफ के गठन के बाद, उसे स्थानीय प्रमुखों की आवश्यकता थी जो कुशल और विश्वसनीय हों. इसके लिए कुलगाम के रामपुरा गाँव के मोहम्मद अब्बास शेख को टीआरएफ का प्रमुख बनाया गया. वह 1996 से एलईटी से जुड़ा एक पुराना और विश्वसनीय आतंकवादी था.

मोहम्मद अब्बास शेख के साथ एलईटी का एक और विश्वसनीय सदस्य शेख सज्जाद गुल भी था. पहलगाम हमले की योजना और लोकेशन बदलने में इसी की मुख्य भूमिका थी. बाद में, कश्मीर में टीआरएफ के ओवर ग्राउंड वर्कर (ओजीडब्ल्यू) नेटवर्क की जिम्मेदारी फारूक अहमद को दी गई. फारूक 2016 से पीओके के मुजफ्फराबाद में रहकर ओजीडब्ल्यू नेटवर्क को संभालता था और पाकिस्तान से आतंकियों को एलओसी पार कराकर कश्मीर में दाखिल करवाता था. पहलगाम हमले के सभी ओजीडब्ल्यू उसके संपर्क में थे. ओवर ग्राउंड वर्कर्स (OGWs) वे लोग होते हैं जो भारत से नफरत करते हैं लेकिन हथियार नहीं उठाते. वे सामान्य नागरिकों की तरह रहते हुए आतंकियों को खाना, आश्रय, सेना की जानकारी और क्षेत्र का विवरण प्रदान करते हैं. ओजीडब्ल्यू के बिना आतंकी संगठनों के लिए कश्मीर में काम करना बहुत मुश्किल हो जाता है.

कश्मीर में बदलती स्थिति और टीआरएफ की हताशा 2022 आते-आते टीआरएफ ने अपना नेटवर्क मजबूत कर लिया. उन्होंने ऑनलाइन पोर्टल्स, टेलीग्राम और सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल किया और प्रोपेगेंडा फैलाया. उन्होंने कश्मीर में गैर-स्थानीय लोगों और डोमिसाइल धारकों को निशाना बनाना शुरू किया. लेकिन कश्मीर की स्थिति तेजी से बदल रही थी. 2018 में 1458 पत्थरबाजी के मामले थे, जो 2020 में 255 और 2023-24 में शून्य हो गए. 2018 में जहाँ 228 आतंकी मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2023 में टीआरएफ सिर्फ 44 हमले कर पाया.

पर्यटन में जबरदस्त वृद्धि हुई: 2018 में 8.5 लाख पर्यटक से बढ़कर 2023 में 31 लाख और अगले साल 43 लाख पर्यटक आए. निवेश भी बढ़ा, जिससे कश्मीर की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली. डोमिसाइल कानून लागू होने से बाहर के लोग भी कश्मीर में बस सकते थे. टीआरएफ का मुख्य उद्देश्य इस बढ़ती आर्थिक गतिविधि और शांति को बाधित करना था. पर्यटकों की बढ़ती संख्या और स्थानीय लोगों की आर्थिक समृद्धि ने टीआरएफ को हताश कर दिया, और यहीं से पहलगाम जैसे बड़े हमले की असली योजना शुरू हुई.

2023 के सितंबर में, हाशिम मूसा के बारे में प्रारंभिक जांच में पता चला था कि वह पाकिस्तान आर्मी का एसएसजी पैरा कमांडो था. मूसा और उसके साथ अली भाई, जिनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, दोनों पाकिस्तानी नागरिक थे. सितंबर 2023 में, इन दोनों को कठुआ और सांबा सेक्टर के रास्ते कश्मीर में घुसाया गया. कश्मीर पहुंचने के बाद, ओजीडब्ल्यू (ओवर ग्राउंड वर्कर) की मदद से वे खारी माहौर बसंतगढ़ में एक सेफ हाउस में रहे. मूसा को बेहतरीन कॉम्बैट ट्रेनिंग दी गई थी; वह कई दिनों तक बर्फ और जंगल में रह सकता था.

योजना यह थी कि कश्मीर में होने वाले हमलों का नेतृत्व मूसा, अली भाई के साथ मिलकर करेगा, और फारूक के 15-20 ओजीडब्ल्यू उनकी मदद करेंगे. कहने का मतलब है कि पहलगाम हमले के मुख्य दो आतंकवादी सितंबर 2023 में कश्मीर पहुंच चुके थे. कश्मीर पहुंचने के बाद, उन्होंने कुछ छोटे ऑपरेशन किए.

अक्टूबर 2024 में, पहलगाम हमले का तीसरा आतंकवादी आदिल ठोकर, जो शुरू में स्टूडेंट वीजा पर पाकिस्तान गया था, अपनी ट्रेनिंग पूरी करके पुंछ-राजौरी सेक्टर से कश्मीर में घुस आया. एहसान नाम का एक और आतंकवादी उसी समय कश्मीर आया था, लेकिन यह पुष्टि नहीं हुई है कि वह पहलगाम हमले के दिन मौजूद था या नहीं. कश्मीर पहुंचने के बाद, इन लोगों ने कुछ समय तक गैर-स्थानीय लोगों पर हमले किए, खासकर उन मजदूरों पर जो इंफ्रास्ट्रक्चर और डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स में शामिल थे, जैसे गगनगिर में जी-मोर टनल प्रोजेक्ट पर छह मजदूर और एक डॉक्टर को मारा. फिर उन्होंने डेरा की गली (डीकेजे) में हमले किए. इस तरह, वे हर थोड़े समय में वहीं से हमले कर रहे थे.


जुनैद अहमद भट्ट का मोबाइल फोन और इमेज

इसके दो महीने बाद, यानी दिसंबर 2024 में (पहलगाम हमले से 3-4 महीने पहले), श्रीनगर के दचिगम में, जुनैद अहमद भट्ट नाम के एक आतंकवादी को फोर्सेज ने एक ऑपरेशन में घेरकर मार दिया. उसकी बॉडी की जांच करने पर एक मोबाइल फोन मिला, जिसमें पाकिस्तान से आ रहे एन्क्रिप्टेड संदेश और निर्देश पकड़े गए. इस मोबाइल से एक इमेज मिली, जो पहलगाम हमले के बाद बहुत वायरल हुई थी. यह इमेज दिसंबर 2024 में जुनैद के मोबाइल से मिली थी, लेकिन उस समय फोर्सेज मूसा को पहचान नहीं पाई थीं. पहलगाम हमले के बाद, जब पर्यटकों ने हमलावरों का विवरण दिया और स्केच बनाए गए, तब यह फोटो सामने आई, और पकड़े गए ओजीडब्ल्यू की जानकारी से पता चला कि इस फोटो में दाईं ओर मूसा और उसके बगल में जुनैद है, जिसे मार दिया गया था.


हथियारों की व्यवस्था: अमेरिकी M4 राइफलें और ड्रोन

जब ये सभी लोग कश्मीर में पहुंच गए, तो हथियारों की व्यवस्था के बारे में भी रिपोर्टें आईं. पहलगाम हमले में अमेरिकी M4 राइफलें इस्तेमाल की गईं. ये M4 राइफलें AK-47 से उन्नत थीं, और इनमें नाइट विजन डिवाइस और कैमरे लगाए जा सकते थे. पहलगाम हमले के बाद क्राइम सीन से बरामद कारतूसों के बैलिस्टिक विश्लेषण से पता चला कि M4 कार्बाइन और AK-47 जैसी बंदूकें इस्तेमाल की गईं. अमेरिकी M4 राइफलों के बारे में यह भी पता चला है कि जब यूएसए अफगानिस्तान से निकला था, तो करीब $7 बिलियन डॉलर के हथियार अफगानिस्तान में छोड़ गया था. इन हथियारों में अमेरिकी M4 राइफलें भी शामिल थीं, जो ब्लैक मार्केट में पहुंचीं. खुफिया रिपोर्टों के अनुसार, जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मुफ्ती अब्दुल रऊफ असगर, जिसे हथियारों की खरीद और लॉजिस्टिक्स का काम सौंपा गया था, ने इन M4 राइफलों को खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र के रास्ते जैश-ए-मोहम्मद के मुख्यालय मरकज कैंप में तस्करी करवाया. वहां से, ड्रोन का उपयोग करके इन हथियारों को कश्मीर में गिराया गया. कश्मीर में हथियार लाने की यह प्रक्रिया कई सालों से चल रही थी.


हमास और पहलगाम हमले का अनोखा स्टाइल

इसके बाद एक बहुत ही असामान्य गतिविधि हुई, और जिस शैली में पहलगाम हमला किया गया, उसकी वजह से इस घटना का महत्व बढ़ गया. अगस्त 2024 में, कतर के दोहा में, यूएन का नामित आतंकवादी और लश्कर-ए-तैयबा का मुखिया सैफुल्ला कसूरी हमास के नेता खालिद मशाल से मिला था. उस समय पाकिस्तान की पाकिस्तान मरकजी मुस्लिम लीग (पीएमएमएल) ने भी इस बैठक के वीडियो डाले थे. उस समय इस बात पर किसी ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया था, लेकिन असली खतरे की घंटी 5 फरवरी 2025 को बजी. इस दिन पाकिस्तान के रावलकोट के शहीद सब्बीर स्टेडियम में हमास के नेता आए. यह इतिहास में पहली बार हुआ था जब हमास की लीडरशिप ने पीओके के अंदर कदम रखा था. यहां पहुंचने के बाद, उन्होंने एक कॉन्फ्रेंस रखी, जिसका आधिकारिक नाम 'कश्मीर सॉलिडेरिटी एंड हमास ऑपरेशन अल-अक्सा फ्लड कॉन्फ्रेंस' रखा गया. यहां उन्होंने काफी रैलियां कीं और भारत के खिलाफ बहुत सारा जहर उगला. यहां से यह लगने लगा था कि अब कश्मीर में ये लोग कुछ करने वाले हैं, और पहलगाम हमला भी हमास शैली में ही हुआ. इस बैठक के बाद, रिपोर्टें आने लगीं कि हमास ने यहां आने के बाद कश्मीर के अंदर हमले करने की रणनीति, एन्क्रिप्टेड संचार के तरीके, और नागरिकों को निशाना बनाने पर चर्चा की.


पहलगाम की सैटेलाइट इमेजेस की मांग में वृद्धि

5 फरवरी को हमास की लीडरशिप पीओके पहुंची, और इसके एक हफ्ते बाद एक और असामान्य चीज होती है. यूएस की एक प्रसिद्ध सैटेलाइट कंपनी मैक्सार टेक्नोलॉजीज के पास कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र की हाई-रेजोल्यूशन इमेजेस की मांग अचानक दोगुनी हो गई. पहलगाम एक पर्यटन क्षेत्र है, कोई युद्धक्षेत्र नहीं कि इस तरह की मांग बढ़ना सामान्य हो. 12, 15, 18, 21 और 22 फरवरी 2025 को सबसे ज्यादा हाई-रेजोल्यूशन इमेजेस के ऑर्डर आए.

यूएस की सैटेलाइट कंपनी मैक्सार टेक्नोलॉजीज हाई-रेजोल्यूशन सैटेलाइट इमेजेस (30 सें.मी. से 15 सें.मी. तक) दुनिया भर की अनुमोदित सरकारों और रक्षा एजेंसियों को बेचती है, जैसे भारत में इसरो और रक्षा मंत्रालय इसके ग्राहक हैं. ये हाई-रेजोल्यूशन सैटेलाइट इमेजेस सामान्य नहीं होतीं; इनसे जमीन पर छोटी से छोटी चीज देखी जा सकती है. इन हाई-रेजोल्यूशन इमेजेस के माध्यम से हमले की योजना, लक्ष्य सत्यापन आदि जैसी चीजें होती हैं. ये इमेजेस युद्धक्षेत्र में एक सामरिक हथियार की तरह काम करती हैं. इसलिए, वे अपनी इमेज केवल अनुमोदित सरकारी एजेंसियों के साथ साझा करते हैं. निजी या यादृच्छिक संस्थाओं को वे हाई-रेजोल्यूशन इमेज नहीं देते, बल्कि लो-ग्रेड इमेज देते हैं जो काम की नहीं होतीं.


पाकिस्तानी कंपनी और सैटेलाइट इमेजेस का खेल

अब सवाल यह उठता है कि पहलगाम जैसे क्षेत्र की इमेजेस की मांग इतनी क्यों बढ़ी, और इन इमेजेस तक पहुंचना इतना आसान नहीं है. जब इसके बारे में पता लगाया गया, तो एक नया खेल सामने आया. जून 2024 में, एक पाकिस्तानी कंपनी, बिनेस सिस्टम इंटेलिजेंस प्राइवेट लिमिटेड (बीएसआई), ने यूएस की सैटेलाइट कंपनी मैक्सार टेक्नोलॉजीज की सभी शर्तें मानकर उसके साथ साझेदारी कर ली. इस साझेदारी से पाकिस्तानी कंपनी बीएसआई को यह फायदा हुआ कि उसे उन हाई-रेजोल्यूशन इमेजेस के अधिकार भी मिल गए, जिन्हें आसानी से एक्सेस नहीं किया जा सकता था, जो अभी तक अनुमोदित सरकारी एजेंसियों के लिए विशेष थीं. यह पाकिस्तानी कंपनी बीएसआई चाहे तो अपने पाकिस्तानी ग्राहकों को भी दे सकती है, और यह भी नहीं पता कि वे पाकिस्तानी ग्राहक कहीं आतंकी संगठन ही न हों, और ऐसा होने की संभावना बहुत ज्यादा है.

ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इस कंपनी का संस्थापक, उबैदुल्ला सैयद, भी फड़िया निकला. वह परमाणु अनुसंधान और मिसाइल विकास जैसे संवेदनशील कार्यों के लिए उपयोग किए जाने वाले हाई-परफॉरमेंस कंप्यूटिंग उपकरण और उन्नत सॉफ्टवेयर को यूएस से छुपकर पाकिस्तान की पाकिस्तान एटॉमिक एनर्जी कमीशन (पीएईसी) को अवैध रूप से निर्यात कर रहा था. यूएस ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया और फिर यूएस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट फॉर द नॉर्दर्न डिस्ट्रिक्ट ऑफ इलिनोय ने 18 यूएससी 371 के तहत उसे सजा दी.


पीएम मोदी की कश्मीर यात्रा और हमले की योजना

फरवरी 2025 के पहले हफ्ते में हमास पीओके में बैठक करता है. उसी महीने पहलगाम क्षेत्र की इमेज की मांग दोगुनी हो जाती है. फिर इसके 10-15 दिन बाद, मार्च 2025 में एक घोषणा होती है: पीएम नरेंद्र मोदी अगले महीने, यानी 19 अप्रैल 2025 को वंदे भारत के उद्घाटन के लिए कश्मीर आएंगे.

जब यह घोषणा हुई थी, तब पाकिस्तान से आए मूसा, अली भाई, आदिल ठोकर और उनके समूह के बाकी लोग कश्मीर के अंदर ही थे. जिस महीने यह घोषणा हुई, यानी मार्च 2025, इस पूरे महीने न तो कोई सैटेलाइट इमेजेस के ऑर्डर आए और न ही मूसा और अली भाई ने कोई गतिविधि की. ऐसा माना जा रहा है कि इसी महीने किस्तवाड़ के जंगलों में टीआरएफ के हेड शेख सज्जाद गुल, मूसा, अली भाई और आदिल ठोकर ने योजना बनाई होगी.


एन्क्रिप्टेड संचार और नेविगेशन के नए तरीके

लेकिन इसमें सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि ये सभी लोग आपस में या पाकिस्तान के अंदर जो भी संचार कर रहे थे, उसके बारे में किसी को पता ही नहीं चल पाया. पहले जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और अन्य आतंकवादी 26/11 मुंबई हमले के दौरान थुराया सैटेलाइट फोन के माध्यम से संचार कर रहे थे, जो पकड़ी गई थीं. लेकिन इस बार उन्हें पाकिस्तान मिलिट्री के अंदर उपयोग होने वाले अल्ट्रासेट्स देकर कश्मीर भेजा गया था. हुआवेई, एक चीनी कंपनी जो भारत में प्रतिबंधित है, ने कुछ विशेष स्मार्टफोन लॉन्च किए थे (मेड 60 प्रो, 60 सीरीज और 11 अल्ट्रा). इसमें आंतरिक सैटेलाइट एंटीना और विशेष चिप डाली गई थी. इसका उद्देश्य यह था कि यदि उपयोगकर्ता को कोई आपात स्थिति हो और इंटरनेट न हो, तो वह इन फोन को चीन के तियानटोंग वन सैटेलाइट नेटवर्क, जिसे चाइना टेलीकॉम प्रबंधित करता है, से कनेक्ट करके बिना इंटरनेट के वॉइस, टेक्स्ट और वीडियो चैट कर सके. मूल रूप से, एक सामान्य फोन सैटेलाइट फोन में बदल जाता है.

इन्हीं अल्ट्रासेट्स को अपग्रेड करके पहलगाम की पूरी योजना में उपयोग में लाया गया. हमले वाले दिन भी ये अल्ट्रासेट्स उपयोग हो रहे थे. इन्हें इसलिए नहीं पकड़ा जा रहा था क्योंकि जब मूसा और अली भाई जैसे आतंकवादी कश्मीर में बैठकर आपस में संचार कर रहे थे, तो वास्तव में सैन्य-ग्रेड एन्क्रिप्टेड रेडियो सिग्नल भारतीय सेलुलर और सैटेलाइट निगरानी प्रणाली को बाईपास करके चीन की सैटेलाइट का उपयोग करते थे, और फिर उसके माध्यम से पाकिस्तान में सर्वर तक सिग्नल जाते थे, जिससे उनका संचार ट्रेस नहीं हो पा रहा था. इसलिए यह माना जा रहा है कि मार्च का पूरा महीना और यह पूरी योजना पकड़ में नहीं आ पाई; उनके संचार ही नहीं पकड़े गए. पाकिस्तान के कराची और पीओके के मुजफ्फराबाद में बैठकर इन अल्ट्रासेट्स का उपयोग करके समन्वय किया गया, जहां एक-एक कदम समझाया गया कि कार्य को कब, कहां और कैसे पूरा करना है. ये अल्ट्रासेट्स केवल एक बार 2023 में सुरनकोट के एक मुठभेड़ में एक आतंकवादी के पास से हाथ लगे थे. इसे क्रैक करने की कोशिश की गई, यहां तक कि इस अल्ट्रासेट को पश्चिमी देशों को भी भेजा गया था, लेकिन यह क्रैक नहीं हो पाया था. यह एक बहुत बड़ा कारण था कि उनका संचार ट्रेस नहीं हो पा रहा था.

संचार के लिए अल्ट्रासेट्स का उपयोग हुआ, और कश्मीर के जंगलों में जो रास्ते ढूंढे जाते थे, पहले उसमें ओजीडब्ल्यू की बहुत ज्यादा मदद ली जाती थी. लेकिन इस बार ओजीडब्ल्यू की कम मदद ली गई, क्योंकि उन्होंने नेविगेशन के लिए भी नए तरीके अपनाए. उन्होंने एक ऐप का उपयोग किया जिसका नाम अल्पाइन क्वेस्ट है, जिसका उपयोग ट्रैकर्स ऑफ़लाइन नेविगेशन के लिए करते हैं जब इंटरनेट नहीं होता है, तो गूगल मैप की तरह पहाड़ों पर नेविगेट करते हैं. इस अल्पाइन क्वेस्ट के ऑफ़लाइन संस्करण में उन्होंने हाई-रेजोल्यूशन सैटेलाइट इमेजेस का उपयोग किया, जिसकी वजह से मूसा, अली भाई बिना इंटरनेट सेवाओं के, बिना ओजीडब्ल्यू की मदद के, जैसे गूगल मैप चलता है, उस तरीके से इस अल्पाइन क्वेस्ट ऐप का उपयोग करके किस्तवाड़ के जंगलों में घूम रहे थे.


पहलगाम हमले की विस्तृत योजना और रेकी

इसके बाद अप्रैल के पहले सप्ताह में योजना शुरू होती है कि किस तरह कश्मीर के अंदर आ रहे पर्यटकों को और व्यापार को प्रभावित किया जाए, ताकि कश्मीर में तेजी से बदल रही व्यवस्था बाधित हो सके. अप्रैल के पहले सप्ताह में उन्होंने तय किया कि कश्मीर के ज़बरवान घाटी के पास के लग्जरी होटलों पर हमला किया जाएगा, खासकर जिनमें विदेशी पर्यटक होंगे. मूल रूप से, वे कश्मीर के व्यापार को प्रभावित करना चाहते थे; यह एक तरह से कश्मीरियों के खिलाफ व्यापार युद्ध था. इसमें यह भी कहा गया है कि शायद यह भी कारण हो सकता है क्योंकि पीएम नरेंद्र मोदी को भी उस समय कश्मीर में उद्घाटन के लिए आना था, तो उसी समय लग्जरी होटलों में उच्च मूल्य वाले लक्ष्य, जैसे पीएम के प्रतिनिधिमंडल आदि के होने की संभावना भी बढ़ जाएगी. इससे हमले की कवरेज और ज्यादा फैलेगी. इस वजह से, उन्होंने इस समय होटलों के अंदर पर्यटकों पर हमला करने की योजना तय कर दी थी. लक्ष्य तय होने के बाद, 4 अप्रैल 2025 को उन्होंने रेकी शुरू की. रेकी करने आदिल ठोकर के साथ ओजीडब्ल्यू जाते थे. पाकिस्तानी मूसा और अली भाई रेकी करने नहीं जाते थे. रेकी होने के बाद, ओजीडब्ल्यू उन्हें फुटेज साझा करते थे, और फिर योजना बनाई जाती थी. रेकी दैनिक आधार पर होती थी.

इसी बीच, 9 अप्रैल को, एक स्थानीय निवासी, रशपाल, के घर में दो-तीन आतंकवादी M4 राइफल लेकर घुसते हैं. ये आतंकवादी कौन थे, यह पुष्टि नहीं हो पाई, लेकिन यह पुष्टि हुई कि इनमें मूसा, अली भाई में से कोई नहीं था. रशपाल के घर में घुसने के बाद, उन्होंने भोजन, यात्रा बैग और छाता मांगा. फिर रशपाल से फोन मांगा, उसके फोन से व्हाट्सएप कॉल की, उर्दू में कहीं बात की, और फिर सिम तोड़कर रशपाल का फोन वापस कर दिया. उसके बाद जब वे जा रहे थे, तो उन्होंने रशपाल से इलाके के आसपास के क्षेत्रों की दिशा पूछी और सब कुछ पूछने के बाद वे निकल गए. अगली सुबह, यानी 10 अप्रैल को, रशपाल ने पुलिस को सारी चीजें बता दीं. इसके साथ-साथ, इस समय एजेंसियों के पास और भी छोटी-छोटी खुफिया खबरें आ रही थीं कि होटल पर आतंकवादी हमला करने वाले हैं. इन सभी चीजों की वजह से जम्मू-कश्मीर पुलिस और अर्धसैनिक बल दोनों मिलकर दचिगाम, निशांत और आसपास के लग्जरी होटलों में संयुक्त अभियान शुरू करके सुरक्षा बढ़ा देते हैं. फोर्सेज ने सभी होटलों के निकास और प्रवेश बिंदुओं पर निगरानी शुरू कर दी थी. मेहमानों का सत्यापन होने लगा था, और त्वरित प्रतिक्रिया टीम को स्टैंडबाय पर रख दिया गया था.


लक्ष्य परिवर्तन: होटलों से बायसरन घाटी

इसी समय एक और बात सामने आती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कश्मीर यात्रा, जो उद्घाटन के लिए होनी थी, रद्द कर दी जाती है. इसका कारण कश्मीर का खराब मौसम बताया जाता है, और कहा जाता है कि यह यात्रा रद्द की जाएगी और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की जाएगी. इसके कुछ समय बाद, जिस होटल को मूसा, अली भाई और उनके समूह ने निशाना बनाया था कि वे होटल के पर्यटकों पर हमला करेंगे, वह योजना रद्द कर दी जाती है.

अब यह स्पष्ट नहीं है कि यह योजना सुरक्षा कारणों से रद्द हुई या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा रद्द होने के कारण, लेकिन होटल का लक्ष्य, जो सबसे पहले तय किया गया था, उसे रद्द कर दिया जाता है. अब इसके लिए वे फिर से रेकी शुरू करते हैं और रेकी करने के बाद चार स्थान तय किए जाते हैं: अरु घाटी, बेताब घाटी, स्थानीय मनोरंजन पार्क, और बायसरन घाटी. सभी स्थान ऐसे थे जहां पर्यटकों को निशाना बनाया जाए ताकि पर्यटन और बढ़ती अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सके.

इसके बाद, इन चार स्थानों में से मनोरंजन पार्क के स्थान को वे हटा देते हैं. इसका कारण यह था कि इसकी लोकेशन पहलगाम पुलिस स्टेशन से सिर्फ 500 मीटर की दूरी पर थी, यानी पुलिस एक-दो मिनट के अंदर पहुंच सकती थी. अरु घाटी को भी वे अपनी योजना से हटा देते हैं. कारण यह था कि एक तो यहां नेटवर्क की समस्या थी, दूसरा सड़क का कनेक्शन बहुत मजबूत था, तो फोर्सेज का आना और लोगों का भाग जाना बहुत आसान था. बेताब घाटी में भी यही समस्या थी; सुरक्षा बल पास में थे, और हमला करने के बाद आतंकवादियों के बचने के विकल्प बहुत सीमित थे.

अंत में, इन सभी चीजों का आकलन करने के बाद, उन्होंने अंततः पहलगाम की बायसरन घाटी को चुना. इसका कारण यह था कि एक तो यहां कोई सुरक्षा मौजूद नहीं थी, दूसरा पर्यटकों की संख्या दूसरों की तुलना में अधिक थी. यहां गाड़ी नहीं पहुंच सकती थी, केवल ट्रेकिंग करके या घोड़े से जाया जा सकता था. सुरक्षा बलों को आने में भी 30 से 40 मिनट लगते. सीआरपीएफ की डेल्टा कंपनी 116 बटालियन का सबसे करीब का बेस 4 से 5 किलोमीटर पर था. चारों तरफ घने जंगल थे, तो हमला करके जंगलों में भागना बहुत आसान था, और कोई भी सीसीटीवी कैमरा नहीं था.


हमले का दिन: 22 अप्रैल 2025

फिर यहां से उन्होंने पहलगाम की बायसरन घाटी के स्थान को तय कर दिया और इसकी तैयारी शुरू कर दी. जब यह सब हुआ, तो अगले दिन खबर आती है कि यूएस के उपराष्ट्रपति भारत आ रहे हैं. इस खबर के आने की वजह से यह फैसला हुआ कि जब यूएस के उपराष्ट्रपति भारत में होंगे, उसी बीच हमला किया जाएगा ताकि पूरे विश्व में खबर बने. इसलिए 22 अप्रैल की तारीख तय कर दी गई.

जैसे ही तारीख तय की जाती है, बाकी आतंकवादी तो पहले से ही बायसरन के आसपास के क्षेत्र में थे, लेकिन 21 अप्रैल को मूसा और अली भाई, जो इतने दिनों से जंगल में छिपे थे, को हरी झंडी मिलती है और दोनों उसी तारीख, यानी 21 अप्रैल की रात को, कोकरनाग के जंगल से बायसरन घाटी की ओर निकलते हैं. जिस रास्ते को वे पकड़ते हैं वह किस्तवाड़, दच्छन, लर्नू, चटपाल, ऐशमुकाम वाला रास्ता है. कुछ रिपोर्टों में आपको अवंतीपुरा, त्राल, सिरीगुवार, पहलगाम वाला रास्ता भी मिलेगा, लेकिन ज्यादातर रिपोर्टों में किस्तवाड़ वाला ही रास्ता बताया गया है. यहां से वे चलते हैं और 21 से 22 घंटे लगातार चलने के बाद (उन्होंने इस तरह से ट्रेनिंग की थी कि वे लगातार चल सकते हैं), बायसरन के आसपास के जंगलों में आकर बैठ जाते हैं और हमले का इंतजार करते हैं. आदिल ठोकर वहीं सिरीगुवारा के पास के क्षेत्र में था, तो वह पहले से ही वहां था. कहने का मतलब है कि अब सभी आतंकवादी बायसरन घाटी के आसपास के जंगलों में आकर बैठ गए थे और घात लगाकर इंतजार कर रहे थे.

पहलगाम यहां पर है, और यहां से 5-6 किलोमीटर ऊबड़-खाबड़ कच्चे रास्ते से आप ऊपर ट्रैक करके जाते हो तो करीब 1 घंटा लगता है, और ट्रैक करने के बाद आप इस गेट पर पहुंचते हो. जैसे ही आप इस गेट से एंट्री करते हो, तो एंट्री करते ही 800 मीटर लंबा और 600 मीटर चौड़ा हरा मैदान दिखता है. यही मैदान है बायसरन घाटी, और इसी के आसपास के जंगलों में आतंकवादी छिपकर इंतजार कर रहे थे. तो एक यहां से एंट्री-एग्जिट गेट है और एक यहां से एंट्री-एग्जिट गेट है इस मैदान का.

यह पूरा क्षेत्र पहलगाम डेवलपमेंट अथॉरिटी ने ब्रिज बहरा के एक आदमी को 3 करोड़ रुपये में 3 साल के लिए टेंडर में दे दिया था, तो उसी ने इस क्षेत्र के अंदर टिकटिंग सिस्टम किया, जिप लाइनिंग शुरू करवाई और इस क्षेत्र के चारों तरफ बाड़ लगाकर भी सुरक्षित किया. कहने का मतलब है कि इस पूरे क्षेत्र में दो एंट्री-एग्जिट गेट हैं, बाकी चारों तरफ बाड़ लगी है, और सुरक्षा अमरनाथ यात्रा के समय यहां प्रदान की जाती है, बाकी के समय सुरक्षा तभी आती है जब टूर ऑपरेटर या होटल वाले अधिकारियों को सूचित करते हैं कि पर्यटक ज्यादा हो गए हैं.


पहलगाम हमला: घटना का विवरण

22 अप्रैल 2025 का दिन शुरू होता है. सुबह 9:00 बजे बायसरन घाटी की एंट्री खुलती है, और पहलगाम से पर्यटक अलग-अलग होटलों से अपनी-अपनी जगहों से बायसरन घाटी की तरफ पहुंचना शुरू करते हैं, और बायसरन घाटी के मेन गेट से टिकट लेकर बायसरन घाटी में एंट्री लेना शुरू करते हैं. धीरे-धीरे करके 1000 टिकट बिक चुके थे, मतलब कि 1000 लोगों का आना-जाना इस क्षेत्र में हो चुका था.

दोपहर के 1:30 बज चुके थे, और तब तक करीब 400 पर्यटक इस स्थान के अंदर बचे थे, बाकी सभी वापस जा चुके थे. किसी को भी बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि आगे क्या होने वाला है. इसके 15 मिनट बाद, यानी 1:45 बजे, पहला आतंकवादी, संभवतः आदिल ठोकर, मैदान में प्रवेश करता है. इस पूरे दृश्य में यह कहना मुश्किल होगा कि आदिल किधर से घुसा या मूसा किधर से घुसा, क्योंकि इसकी पुष्टि नहीं हो पाई कि आदिल किधर से घुसा, मूसा किधर से घुसा. केवल इतना पुष्टि हुई है कि मूसा, अली भाई और आदिल वहां थे जिन्होंने बंदूकें चलाई थीं, और कुछ आतंकवादी जंगल में बैकअप के रूप में थे, कुछ ऐसे थे जिनके हाथ में बंदूक नहीं थी, लेकिन वे भीड़ में मिले हुए थे. इसलिए, उस समय वहां कितने आतंकवादी थे, यह कहना मुश्किल था, लेकिन अली भाई, मूसा और आदिल ठोकर वहां निश्चित रूप से थे जिन्होंने बंदूक उठाकर लोगों को मारा.

इस तरह, एक आतंकवादी कश्मीरी फेरन पहनकर इस तरफ से मैदान में प्रवेश करता है. उसने अपनी बंदूक कश्मीरी फेरन के अंदर छुपा रखी थी, तो आराम से पब्लिक के बीच में घुसकर इधर यह जो एंट्री-एग्जिट गेट है, उसकी तरफ जाने लगता है. जैसे ही वह एंट्री-एग्जिट गेट पर पहुंचता है, वह बंदूक निकालकर हवा में फायरिंग करना शुरू कर देता है. किसी आदमी पर नहीं चलाता, हवा में लगातार फायरिंग करता है और भीड़ को जो मेन एंट्री-एग्जिट गेट है, उसकी तरफ ले जाने की कोशिश करता है.

जैसे ही भीड़ मेन एंट्री-एग्जिट गेट की तरफ इकट्ठा होने लगती है, तो वहीं साइड से जंगलों की तरफ से बाड़ लगी हुई थी, वहां से कूदकर दो आतंकवादी सैन्य ट्रैक सूट पहनकर खड़े हो जाते हैं, और संभवतः ये मूसा और अली भाई ही थे. जनता सोच रही थी कि वे सुरक्षाकर्मी हैं. देखिए, ऐसे ही कुछ आतंकवादी आए, रैंडम उन्होंने फायर करके लोगों को मार दिया, ऐसा नहीं था. यह एक सुनियोजित जाल था जिसमें दोनों एंट्री-एग्जिट पॉइंट्स को ठीक से ब्लॉक किया गया और इन सभी पर्यटकों को चारों तरफ से घेरा गया. क्षेत्र बहुत बड़ा था, तो जब ये सारी चीजें हो रही थीं, तो कुछ लोग जो दूसरी तरफ थे, उन्हें पता ही नहीं चल पाया कि दूसरी तरफ क्या चल रहा है; वे आराम से अपना जिप लाइनिंग आदि कर रहे थे.

 

त्रासदी और उसके बाद

जब भीड़ मेन एंट्री-एग्जिट पॉइंट पर पहुंचती है, तो वे दोनों आतंकवादी, जिन्हें लोग सुरक्षाकर्मी समझ रहे थे, भी गोली चलाना शुरू कर देते हैं. फिर वे सारी भीड़ को इधर यह जो भेलपुरी, चाय और भोजन की स्टॉल थी, इस बिंदु पर भीड़ को इकट्ठा करते हैं, औरतों और आदमियों को अलग करते हैं. ये सारी चीजें उन्होंने मेन एंट्री-एग्जिट गेट से 50 मीटर के अंदर ही कीं.

आदमी और औरतों को अलग करने के बाद, वे आदमियों से पूछते हैं कि हिंदू हैं या नहीं, और फिर जो नहीं बताते, उनसे कलमा पढ़वाते हैं. देवाशीष भट्टाचार्य के पास जैसे ही आतंकवादी आए, उन्होंने कलमा पढ़ दिया, तो उनको छोड़कर आतंकवादी दूसरी तरफ चला जाता है. एक ईसाई वहीं बगल में खड़ा था, उससे फिलिस्तीन के मुद्दे पर बोलने को कहा गया. कुछ की पैंट उतरवाई गई, और फिर जो हिंदू पर्यटक थे, उन्हें करीब से गोली मार दी गई.

इसी समय, आदिल हुसैन, जो पोनी राइडर था, पर्यटकों को घुमाने लाया था. आदिल के एक पर्यटक को आतंकवादी गोली मारता है, तो आदिल उससे बहस करने लगता है, उसकी बंदूक छीनने लगता है, तो आतंकवादी आदिल हुसैन को भी तीन गोली मारकर उसकी जान ले लेते हैं. उनके पास M4 राइफल, AK-47 थी, उनकी बॉडी पर जीपी कैमरे लगे हुए थे, तो वे सारी चीजें रिकॉर्ड कर रहे थे, और जिन लोगों की जान चली गई थी, उनके साथ सेल्फी लेकर अपने फोन में रख रहे थे. और भी बहुत सारी चीजें हैं जो मैं बता नहीं पाऊंगा और आप सुन भी नहीं पाओगे.

ये सारी चीजें ये लोग 20 से 25 मिनट तक इन्होंने की. इन सभी चीजों में 26 लोगों की जान गई. और फिर जब ये सारी चीजें हो गईं, तो इसके बाद इन्होंने भीड़ में से ही दो फोन लिए, जबरदस्ती छीने उनसे, और उन फोन को लेकर बाईं ओर वाली दीवार की बाड़ के ऊपर से कूदकर जंगलों में भाग गए. अब वे तो भाग गए, लेकिन वहां चारों तरफ लोग चिल्ला रहे थे, अपनी परिवार के लिए मदद मांग रहे थे, लेकिन दूर-दूर तक मदद ही नहीं थी कोई.


बचाव अभियान और टीआरएफ की जिम्मेदारी

फिर जैसे-तैसे करके 2:30 बजे पुलिस के पास पहली बार सूचना पहुंचती है कि बायसरन घाटी में आतंकवादियों ने यह सब कर दिया है. पहलगाम पुलिस स्टेशन के एसएओ चौंक जाते हैं, और उनको बायसरन घाटी पहुंचने में समय लगता, तो उन्होंने जल्दी मदद भिजवाने के लिए कश्मीर की सभी यूनियन के जनरल प्रेसिडेंट अब्दुल वाहिद को सूचित किया कि यह सब हो गया है और जल्दी से जल्दी मदद भेजी जाए. अब्दुल वाहिद को जैसे ही पता चलता है, वे पोनी ओनर एसोसिएशन के प्रेसिडेंट रईस अहमद भट्ट को बता देते हैं. इनके भी फोन के नेटवर्क नहीं आ रहे थे, तो वे अकेले ही बायसरन घाटी की तरफ भागने लगते हैं और जो रास्ते में जो इनको एक-दो लोग मिलते हैं, उनको अपने साथ ले लेते हैं, और जंगल से शॉर्टकट लेकर फोर्सेज से पहले पहुंच जाते हैं. कहने का मतलब है कि इतनी भीड़ में सिर्फ पांच-छह लोग ही मदद के लिए पहुंच पाए थे. ये पेशेवर भी नहीं थे, तो ये लोग पीठ आदि पर बैठाकर जिस तरीके से बचाव किया जा सकता था, वह कर रहे थे. फिर जैसे-तैसे करके एसएओ रियाज पहुंचते हैं, और फिर सीआरपीएफ की 116 बटालियन के कमांडेंट राजेश कुमार अपनी 25 लोगों की टीम के साथ पैदल भागते-भागते मौके पर पहुंच जाते हैं, और फिर बचाव अभियान शुरू होता है. हेलीकॉप्टर आदि आते हैं. जैसे ही यह हमला होता है, उसके थोड़ी देर बाद टीआरएफ ने हमले की जिम्मेदारी ली, और कारण बताया कि जो डोमिसाइल मुद्दे उठाए जा रहे हैं, इसलिए यह हमला किया गया है. इसके बाद, यह पूरा क्षेत्र सैनिटाइज किया जाता है. जिन पर्यटकों के साथ यह सब हुआ था, उनके बयान लिए जाते हैं, स्केच बनवाए जाते हैं. क्रैकडाउन शुरू होते हैं, ओजीडब्ल्यू को पकड़ा जाता है, उनके बयान लिए जाते हैं, और जो लोग इसमें शामिल थे, उनको पकड़कर कैसे योजना बनाई गई, उसे जोड़ा गया, और जो-जो ओजीडब्ल्यू और आतंकवादी पकड़े जा रहे थे, उनके घरों को तोड़ दिया जा रहा था.


टीआरएफ का नाम और पाकिस्तान-चीन की भूमिका

इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि टीआरएफ ने तो पहले ही इस पूरे हमले की जिम्मेदारी ले ली थी, लेकिन 25 अप्रैल 2025 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रेस बयान जारी किया जिसमें इस पहलगाम हमले की आलोचना करनी थी. तो इस प्रेस बयान के पहले मसौदे में सीधे 'द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ)' का नाम लिखा हुआ था, लेकिन जैसे ही टीआरएफ का नाम इसमें लिखा हुआ देखा पाकिस्तान ने, पाकिस्तान ने इसका विरोध किया. पाकिस्तान ने कहा कि यूएन के इस आधिकारिक प्रेस बयान से टीआरएफ का नाम हटना चाहिए. चाइना ने भी यूएन की 1267 प्रतिबंध समिति में टीआरएफ को ब्लैकलिस्ट करने वाले भारत के प्रस्ताव को रोक दिया. चाइना के राजनयिक चंग ली ने पाकिस्तान के कहने पर टीआरएफ का नाम सूची से हटा दिया, और बहुत गर्व से पाकिस्तान ने नाम हटाने के बाद अपने संसद में बताया कि हमने टीआरएफ का नाम नहीं आने दिया.


जारी अभियान

सर्च ऑपरेशन अभी भी जारी है. ओजीडब्ल्यू पकड़े जा रहे हैं, लेकिन मुख्य जो उस दिन बंदूकों पर जिनके हाथ थे, जिन्होंने मारा था, मूसा, अली भाई, आदिल ठोकर, ये सब बचे हुए हैं. इनको अभी भी भारतीय सेनाएं किस्तवाड़ के जंगलों में ढूंढ रही हैं. ऑपरेशन चल रहा है. जैसे-जैसे और जानकारी आएगी, आपको बताया जाएगा.


निष्कर्ष

पहलगाम हमला सिर्फ एक आतंकी घटना नहीं, बल्कि पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में प्रॉक्सी युद्ध को जारी रखने की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था. इस हमले के पीछे पाकिस्तानी सेना के कमांडो और आईएसआई की संलिप्तता साफ है, जैसा कि कई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टें भी पुष्टि करती हैं. जब तक इस आतंकवाद के मूल कारणों और इसे बढ़ावा देने वाली शक्तियों पर लगाम नहीं लगाई जाती, तब तक ऐसे हमले होते रहेंगे. यह समय है कि दुनिया पाकिस्तान की दोहरी नीति को पहचाने और आतंक के खिलाफ एकजुट होकर कार्रवाई करे, ताकि पहलगाम जैसे हमले दोबारा न हों और गुनाहगारों को उनके अंजाम तक पहुंचाया जा सके.


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