Bollywood Actor Secular 100%: मुल्क बड़ा या मजहब, बॉलीवुड ऐक्टर क्यों चुप है पहलगांव आतंकी हमले पर
जब पाकिस्तान में माहिरा खान से लेकर फवाद खान अपने देश के लिए खुलकर बोल रहे हैं तो भारतीय मुसलमान कलाकार खामोश क्यों हैं?
क्या भारतीय मुसलमान कलाकारों का खून नहीं खौल रहा? फलकनाज़ ने जब यह सवाल पूछा तो बॉलीवुड की चमक-दमक से निकल कर यह सवाल भारत के सामाजिक ताने-बाने को खुरीदने लगा। ऐसा लगा कि भारतीय समाज के एक चुपचाप सुलगते सवाल को एक बार फिर सतह पर ला दिया गया।
भारतीय मुसलमान कलाकारों की देशभक्ति और उनकी खामोशी को लेकर एक बार फिर से बहस शुरू हो गई। यह चर्चा शुरू हो गई कि फलकनाज़ ने जो कुछ कहा वो एक बोल्ड स्टेप था या एक कंट्रोवर्सी को जन्म देना सवाल उठने लगा कि क्या भारतीय मुस्लिम कलाकारों की चुप्पी उनकी देशभक्ति पर सवाल पैदा करती है? यह सवाल सोशल मीडिया पर उठने लगा कि क्या मुस्लिम एक्टर देश के लिए वफादार नहीं? मुस्लिम एक्टर्स की खामोशी के चलते ही क्या देश का जो बहुसंख्यक हिंदू समाज है वो देश के भारतीय मुस्लिम समाज पर भरोसा नहीं कर पाता?
क्या भारत के मुस्लिम एक्टर्स को सिर्फ फॉलोअर्स की चिंता है? क्या एक्टर्स के लिए मुसलमान होना ज्यादा जरूरी है या हिंदुस्तानी होना? सोशल मीडिया पर जब यह सवाल आए तो किसी ने कहा कि फलकनाज़ ने वो कहने का साहस किया जो इस देश में कई मुसलमान, यहां तक कि हिंदू भी नहीं कह पा रहे थे। तो किसी ने कहा कि जब हिंदू-मुसलमान विवाद होता है तो हर बार सर्टिफिकेट सिर्फ मुसलमान को क्यों दिखाना पड़ता है? ये सवाल उठाने वाली फलक से लेकर पाकिस्तान को सबक सिखाने वाली कर्नल सोफिया कुरैशी भी तो मुसलमान हैं। ये चर्चा दोनों तरफ बढ़ गई तो हमें लगा कि ज़रा समझ लें कि फलकनाज़ ने जो कुछ कहा, वो साहसिक कदम है या फिर विवाद के बीच है। क्योंकि फलक ने खुलकर कह दिया कि इंडिया में जो मुस्लिम एक्टर्स हैं बॉलीवुड में, टीवी इंडस्ट्री में, वो जब कोई कंट्रोवर्सी होती है तो चुप हो जाते हैं।
चुप होने की वजह – वो नहीं चाहते कि पाकिस्तान में जो उनके लाखों फॉलोअर्स हैं, वो शांत रहें। और फलक कहती हैं कि यहीं से जो हिंदू है उसके मन में सवाल शुरू होता है कि क्या इन पर ट्रस्ट कर सकते हैं। यह अविश्वास जो है, यह मुस्लिम एक्टर्स ने खुद पैदा किया है। फिर फलक ही उदाहरण देती हैं कि पाकिस्तान में तो एक्ट्रेस बोल रहे हैं, हमारे यहां क्यों नहीं बोल रहे?
अब फलक का बयान जो है, वो है तो साहसिक क्योंकि फलक एक ऐसे बयान को लेकर बोल रही हैं जो बहुत कंट्रोवर्शियल है, जोखिम भरा है। मुसलमान होकर, एक एक्टर होकर, उन्होंने न केवल अपनी इंडस्ट्री बल्कि अपने लोगों पर सवाल उठाया। यह बताया कि जब बात देश की हो तब चुप्पी सामाजिक अविश्वास को गहरा कर सकती है। हालांकि उनके बयान को क्या आप जनरलाइज कर सकते हैं? क्या फलक के बयान के बाद आप देश के हर मुसलमान को एक नजर से देख सकते हैं? इसके दोनों तरीके हैं।
विवाद का बीज भी है क्योंकि इस बयान को लेकर कई लोगों ने देश के हर मुसलमान को निशाना साधना शुरू कर दिया। और फिर वहीं से सवाल आया कि सवाल उठाने वाली फलक से लेकर पाकिस्तान को सबक सिखाने वाली भी तो मुसलमान है। दूसरा सवाल जो उठा – कि भारतीय मुस्लिम कलाकारों की चुप्पी जो है, वो क्या गद्दारी है? क्योंकि फलक का ये आरोप था कि मुस्लिम कलाकार खामोश हैं और यह हिंदुओं में अविश्वास पैदा कर रहा है।
क्या वजह हो सकती है? इसकी वजह जब हमने तलाशने की कोशिश की तो कई सारी बातें निकल कर आईं। जब हमने संवाद किया – एक सामाजिक दबाव। भारत में जो मुसलमान कलाकार हैं, उन्हें कदम-कदम पर देशभक्ति साबित करनी पड़ती है। इतिहास गवाह है कि कई बार मुस्लिम कलाकारों ने जब देश के किसी मसले पर बोलना चाहा तो उन्हें पाकिस्तान समर्थक, देशद्रोही या फिर देश से दफा होने के लिए कह दिया गया।
उदाहरण के तौर पर शाहरुख खान ने 2015 में असहिष्णुता को लेकर टिप्पणी की थी, तो उन्हें महीनों तक ट्रोलिंग और बॉयकॉट का सामना करना पड़ा। आमिर खान को भी ये सामना करना पड़ा। ऐसे में क्या जानबूझकर इन लोगों ने खुद को खामोश कर लिया? वैसे इतिहास गवाह है कि बॉलीवुड में टॉप एक्टर – चाहे सलमान हो, आमिर हो, शाहरुख हो – वो अक्सर शांत रहते हैं, न्यूट्रल रहते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि दर्शक दोनों हैं। कई कलाकार ये भी मानते हैं कि उनकी चॉइसेस पर्सनल होनी चाहिए – वो नहीं बोलेंगे, ये उनकी स्वतंत्रता है।
दूसरा – फलक के आलोचक ये भी कहते हैं कि इस देश में जब अमिताभ बच्चन और धोनी शांत रहते हैं तो उनकी देशभक्ति पर सवाल क्यों नहीं उठता? क्या बॉलीवुड के सारे हिंदू सितारे जो हैं वो कमेंट कर रहे हैं? यह सवाल भी उठता है। हालांकि इस विषय पर हमें यह लगता है कि हर कलाकार का बोलना, चुप रहना, अपना स्टैंड चुनना – उसकी पर्सनल राइट है। लेकिन यह बात जरूर सच है – जब राष्ट्र संकट में हो, अगर उस वक्त आप खामोश हैं और एक ही तरह के लोग खामोश हैं तो यह समाज में गलतफहमी, अविश्वास को जन्म दे सकते हैं।
जैसे फलकनाज़ ने कहा कि विश्वास जीतो – चुप रहकर नहीं मिलेगा। तो यह एक विषय है जिस पर दो नजरिए हो सकते हैं तीसरा सवाल – माहिरा खान और फवाद खान बोल रहे हैं। पाकिस्तानी कलाकारों का उदाहरण दिया गया – क्या वो सही है? क्योंकि फलक ने माहिरा खान, फवाद खान जैसे एक्टर्स का उदाहरण दिया, कहा – वो अपने देश के लिए खुलकर बोलते हैं। अब यह तुलना जो है, इस पे भी चर्चा हो सकती है।
दो पहलू हैं:
एक – अगर माहिरा और फवाद ने जब राय रखी राष्ट्र हितों को लेकर, सांस्कृतिक पहचान पर – तो ये इंस्पिरेशनल हो सकता है कि कलाकार भी देश का हिस्सा है, उसे भी बात रखनी चाहिए। इंडिया के एक्टर्स को बोलना चाहिए – अगर पाकिस्तानी वाला स्टैंड ले रहा है, तो आप भी स्टैंड लीजिए। हर जगह चुप होना भी ठीक नहीं होता है।
देखिए ना – उन दोनों ने बॉलीवुड में काम किया, प्रोफेशनलिज्म यहां भी था। लेकिन अपने देश को लेकर उनकी जो कमिटमेंट थी, उस पर स्टैंड लिया। तो हमारे यहां के लोगों को भी फॉलोअर्स की चिंता नहीं करनी चाहिए – उन्हें भी स्टैंड लेना चाहिए। दूसरा पहलू ये है कि इंडिया और पाकिस्तान में अंतर है। पाकिस्तान में आपको जबरदस्ती दिखाना पड़ता है कि आप नेशनलिस्ट हो। वहां पर आपसे पोस्ट करवाते हैं – और खासतौर पर वो लोग जिनके इंडिया से कनेक्शन हैं, उन्हें सुनिश्चित किया जाता है कि तुम पोस्ट डालो।
और इसीलिए आप देख रहे हो कि बहुत सारे पाकिस्तानी लिख रहे हैं – वो जो पहले नहीं लिखते थे। इसके पीछे नंबर गेम भी हो सकता है। पाकिस्तानियों को पहले लगता था कि इंडिया में ज्यादा व्यूज हैं – लेकिन अब इंडिया ने बैन कर दिया है, उनकी ऑडियंस सिर्फ पाकिस्तान की है। तो अपनी अवाम को टारगेट करने के लिए, सोशल मीडिया पर नंबर बढ़ाने के लिए भी वो कह रहे हैं। यह भी एक वजह हो सकती है। लेकिन यह पहलू जरूर है कि अगर पाकिस्तान के एक्टर्स बोल रहे हैं – तो इंडिया के एक्टर्स क्यों नहीं बोल रहे? इस पर चर्चा तो कम से कम बन सकती है। हालांकि ये चर्चा बॉलीवुड को लेकर होनी चाहिए, क्या इसको केवल मुस्लिम एक्टर से जोड़ना चाहिए? यह एक चर्चा का केंद्र हो सकता है।
तीसरी बात — पहले मुसलमान या पहले हिंदुस्तानी? अब फलक का ये कहना है कि सबसे पहले आपको अपने देश से प्यार करना होगा। एक इंपॉर्टेंट, पावरफुल संदेश है ये। सवाल उठता है — क्या धर्म और राष्ट्रीयता के बीच में टकराव है? क्योंकि चाहे वो जिस धर्म का आदमी हो, एक इंडियन होने के नाते हम ये मानेंगे कि वो इंडिया को सबसे ज्यादा प्यार करेगा और ये होना भी चाहिए। लेकिन इसमें प्रॉब्लम ये है कि धर्म या देश — ये सवाल क्या हम हिंदुओं से पूछते हैं? और अगर कुछ मुसलमानों ने गलत किया, तो क्या पूरे देश के मुसलमानों से सवाल पूछना चाहिए?
ये इसलिए भी इंपॉर्टेंट है क्योंकि पाकिस्तान को जिस कर्नल सोफिया कुरैशी ने सबक सिखाया, वो भी मुस्लिम हैं। और मुसलमान होने के नाते वीरता दिखा रही हैं — भारतीय सेना में अपनी वीरता देशभक्ति के लिए जानी जाती हैं। कलाम साहब भी मुसलमान थे। तो अगर एक मुसलमान को लेकर सारे मुसलमानों को आप गाली दे रहे हैं, तो एक मुसलमान को लेकर सबकी तारीफ भी कर सकते हैं। ये भी एक कहानी है जो इसमें निकलकर आती है। तो मेन प्रॉब्लम ये है कि फलक का बयान साहसिक तो है, लेकिन जनरलाइज करना कि सारे मुसलमान ऐसे हैं — शायद ये क्वेश्चनेबल होगा। क्योंकि कई मुसलमान सिंगर्स, कंपोजर्स, राइटर्स ने सवाल उठाए हैं। और सवाल यह भी कि क्या सारे हिंदू कलाकार भी हर राष्ट्रीय मुद्दे पर बोलते हैं? और अगर नहीं बोलते, तो फिर उन पर सवाल क्यों नहीं उठता?
उदाहरण के तौर पर — धोनी, अमिताभ बच्चन। अमिताभ बच्चन जब अपना जो स्टेटस लगाते हैं, जो भी लिखते हैं — उन्होंने एक टिप्पणी नहीं की। अमिताभ बच्चन इस देश के महानायक हैं लेकिन आज तक किसी मसले पर बीते कुछ सालों में उनके मुंह से कुछ नहीं निकला। महेंद्र सिंह धोनी जो अक्सर अपने दोस्तों के साथ पार्टी, अंबानी की शादी की फोटो डालते हैं, वो भी अक्सर देश के ज्वलंत मुद्दों पर खामोश रहते हैं। नहीं बोलते हैं। जबकि धोनी इस देश की बहुत बड़ी शख्सियत हैं — वो तो फौज से भी जुड़े हुए हैं। लेकिन इसके बावजूद उनकी खामोशी कई बार लोगों को अखरती है।
लेकिन धोनी की देशभक्ति पर सवाल नहीं उठता। ऐसे में जनरलाइज़ स्टेटमेंट शायद गलत होगा। हो सकता है कई मुस्लिम कलाकार हों जो पाकिस्तान के फॉलोवर्स को लेकर ना लिखते हों, लेकिन क्या सब ऐसे हैं? और क्या सब देशद्रोही हैं? जो चर्चा या जो स्टेटमेंट आ रहा है, उस पर सवाल उठ सकता है। क्योंकि कहा ये जाता है कि जब हिंदू कलाकार शांत हैं, तो वो पर्सनल चॉइस है। जब मुसलमान कलाकार शांत है, तो वो गद्दारी से आता है। और शायद यही वजह हो सकती है कि खामोश रहे — इस पर भी चर्चा हो सकती है। इस पर भी चर्चा हो सकती है कि एक की व्यक्तिगत पसंद और दूसरे की बात गद्दारी — क्या यह सही है?
लेकिन कुल मिलाकर एक बात जो तय है, वो यह है कि फलक की बातों ने समाज में चिंगारी लगा दी है। फलकनाज़ ने एक ऐसी बहस छेड़ दी है जो बॉलीवुड से निकलकर भारत के सामाजिक ताने-बाने तक पहुंच गई है। इसके पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों इंपैक्ट हैं। जैसे आत्ममंथन का विषय है। फलक ने मुस्लिम कलाकारों से आवाज उठाने की अपील की है — जो भविष्य में गलतफहमियां दूर कर सकती है। उनकी बात देशभक्ति का जज़्बा जगा सकती है, सामाजिक संवाद को पैदा कर सकती है — कि अब सब एक साथ आकर पाकिस्तान को कहें कि “तुम्हारी ऐसी की तैसी”।
फलक ने वो बात कही जो कई लोग सोचते हैं लेकिन कहने से डरते हैं। तो शायद ये बहुत सारे लोगों को इंस्पायर भी कर सकती है — बहुत सारे मुस्लिम एक्टर्स जो शायद अभी न बोल रहे हों, शायद फलक की बात सुनकर सोशल मीडिया पर बोलना शुरू कर दें, लिखना शुरू कर दें, और अपने आप को ज़्यादा एक्सप्रेस करें। जो ये मान रहे थे कि नहीं, कलाकार को सिर्फ काम करना चाहिए, वो देश के मुद्दे पर नहीं बोल रहा — उन्हें शायद फलक की आवाज़ ने एक जोश या ज़रिया दे दिया हो।
हालांकि इसके नुकसान भी हैं। नुकसान ये है कि अगर आप हर मुसलमान को एक चश्मे से देखेंगे, तो इंडिया-पाकिस्तान की जगह इंडिया में हिंदू-मुसलमान हो जाएगा। और ये पाकिस्तान के लिए फायदेमंद हो सकता है। पाकिस्तान चाहता भी यही था — इसीलिए उसने पहलगाम में हिंदुओं को मारा ताकि हिंदू और मुसलमान आपस में लड़ जाएं।
और हमारे देश की सरकार ने भी जब ऑपरेशन “सिंदूर लगवा” चलाया, तो उसमें जिन दो महिलाओं को सामने रखा, वो एक मुसलमान थी और एक हिंदू। जो भारत के सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने के लिए एक स्ट्रॉन्ग मैसेज दे रही थीं। ऐसे में जनरलाइज स्टेटमेंट देना शायद समाज में खाई को चौड़ा कर दे। क्योंकि अगर आप सबको एक चश्मे से देखेंगे, तो हिंदू-मुसलमान की खाई और गहरी हो जाएगी। इसे अगर संवेदनशीलता से नहीं लिया गया, तो ये पाकिस्तान की हेल्प कर सकती है।
सो, ऐसे में फलकनाज़ का बयान एक इंपॉर्टेंट टॉपिक पर है, लेकिन इसका जवाब इतना आसान नहीं है। इंडियन मुस्लिम कलाकारों की चुप्पी को देशभक्ति की कमी के रूप में देखना — ये शायद थोड़ी जल्दबाज़ी होगी। इसके कई और नजरिए हो सकते हैं। हो सकता है, बिल्कुल हो सकता है कि कई कलाकार फॉलोअर्स के चलते ऐसा कर रहे हों, कमर्शियल चीज़ों को देखते हुए। लेकिन सब कर रहे हों — ये शायद नहीं है। और मुस्लिम समाज से भी अपील होगी कि भाई साहब, जब मामला राष्ट्र का है, तो आप भी सामने आइए, एक्सप्रेस कीजिए। क्योंकि कई बार खामोशी संदेह पैदा करती है। और वो संदेह आपकी मजबूरी नहीं है — लेकिन अगर आप दूर करेंगे, तो ये बेहतर होगा।
ये एक कहानी है। दूसरी कहानी ये है कि सभी समाज के लोगों को भी ये समझने की जरूरत है — जैसे कलाकारों की जिम्मेदारी है, वो बात ठीक है, लेकिन कलाकारों के साथ समाज की भी जिम्मेदारी है। समाज को भी सभी नागरिकों को एक समान, एक नजरिए से देखना होगा कर्नल सोफिया कुरैशी जैसे उदाहरण भी हमें याद रखने होंगे — कि देशभक्ति धर्म की सीमाओं से परे होती है लेकिन इतना जरूर है कि फलकनाज़ ने एक ऐसे विषय को उठा दिया है, जो समाज को एकजुट भी कर सकता है और समाज को विभाजित भी कर सकता है।
अब ऐसे में हमें तय करना है कि कौन सी चर्चा को हम आगे ले जाना चाहते हैं। बाकी जैसा फलक ने कहा — जय हिंद। मुझे लगता है कि यही नारा अगर हर हिंदुस्तानी के दिल से निकलेगा, अगर हर हिंदुस्तानी भारत को लेकर एकजुट रहेगा, तो फर्क नहीं पड़ता वो किस धर्म का है — और शायद फलक की नियत भी यही थी।