पाकिस्तान की तरफ से गोलियां चली थी 28 निर्दोषों की जान गई थी देश जवाब का इंतजार कर रहा था लेकिन जवाब आया कौन जात हो
भारत में लोग चर्चा कर रहे थे कि आतंकवादियों ने धर्म पूछकर लोगों को कत्ल क्या सरकार पूछी कौन जात हो लोग पाकिस्तान के खिलाफ मास्टर स्ट्रोक की तलाश में थे सरकार पूछी ए भैया कौन जात हो और अब सरकार के चाहने वाले कह रहे हैं कि सर मास्टर स्ट्रोक सर मास्टर स्ट्रोक वो जो कल तक महाराष्ट्र में एक है सेफ है का नारा दे रहे थे कह रहे थे कि भैया बटोगे तो कटोगे
समाज को तोड़ने वाला जहर है ये आज कह रहे हैं कि राष्ट्र निर्माण का औजार है
जब पूरा देश पहलगाम की तरफ देख रहा था मोदी जी की बैठक करती हुई तस्वीरें सामने आ रही थीं
तब दिल्ली से यह ऐलान हुआ कि कौन जात
सुरक्षा के सवाल पर आप इंतजार कर सकते हैं
जिस बात का आप इंतजार नहीं कर सकते वो यह है कि कौन जात हो
वैसे कौन जात हो हिंदुस्तान की पॉलिटिक्स में अहमियत रखता है
हर प्रदेश में रखता है कोई माने ना माने हर नेता को पता होता है कि उसके इलाके में कितनी जात के कौन लोग हैं
उसी आधार पर टिकट बटता है उसी आधार पर नेता अपना एजेंडा तय करता है और उसी आधार पर पूरा इलेक्शन चलता है
इसीलिए शायद भारत की गलियों में सड़क से संसद तक कौन जात हो सदियों से गुजरता रहा है
लेकिन अब मोदी जी खुद पूछ लिए कौन जात हो
तो क्या पलट कर जनता भी पूछेगी कि का हो मोदी जी जाति ही गिनवाएंगे कि विकास भी गिनवाएंगे
यह सवाल बड़ा महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तान का जवाब तो बाद में भी देखा जाएगा
पहले आप यह बताइए कि कौन जात हो
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि 1947 से जाति नहीं गिनी गई कांग्रेस दबा रही थी हमने दिला दिया
लेकिन सवाल यह है कि अगर जाति का डाटा विकास के लिए है तो फिर यह यूटर्न चुनाव से ठीक पहले क्यों
जातिगत जनगणना को लेकर जो सरकार तर्क देना चाहती है वो यह है कि इससे योजनाओं को बेहतर टारगेट किया जा सकेगा
लेकिन एक सच सरकार का भी यह है कि इससे पहले कोई भी योजना जाति के हिसाब से तो बनाई ही नहीं गई
तो फिर अब जातिगत आधार पर जब पॉलिसी की बात हो रही है तो कैसे होगा
क्योंकि यह वही मोदी सरकार है जो कभी जातिगत जनगणना को समाज को बांटने वाला कदम बताती थी
2021 में जो तमाम विपक्षी दल ये पूछ रहे थे कि सरकार क्यों डर रही है
तब बीजेपी ने कहा था गरीबी सबसे बड़ी जाति
लेकिन सवाल यह है कि अब अचानक से सरकार का यूटर्न क्यों
और यू टर्न पहलगाम के बीच में क्यों
पहलगाम के विषय पर पटना बिहार यूपी का जिक्र क्यों
क्या इसका जवाब वोट है
क्या इसका जवाब यह है कि मुद्दा जो है वो थोड़ा भटक जाएगा
उधर से ध्यान इधर आ जाएगा या कोई और मास्टर स्ट्रोक
जैसा कि मोदी सरकार के चाहने वाले कहते हैं कि मोदी जी का दिमाग चाचा चौधरी से तेज है
आप जो सोचते हैं उसको बहुत पहले कर चुके होते हैं भगवान जी
लेकिन वोट की कहानी सच्ची है क्योंकि बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव है और उत्तर प्रदेश में 2027 में चुनाव है
और ऐसा लगता है कि बीजेपी ये मान रही है कि विपक्ष का जाति कार्ड छीन कर वो ओबीसी और दलित वोट बैंक को अपने पाले में कर लेगा
लेकिन सवाल यह है कि वो जो सबका साथ सबका विकास
बटोगे तो कटोगे
हम एक हैं तो सेफ हैं
उन नारों का क्या होगा
और यह जो आंकड़े सरकार देगी
क्या यह वाकई समाज के लिए होंगे
या फिर चुनाव में सियासी फसल काट देंगे
पता नहीं
लेकिन जो हमें पता है वो ये कि अब आईटी सेल की परीक्षा बढ़ जाएगी
क्योंकि आईटी सेल को ये समझाना पड़ेगा कि जो जातिगत गिनती समाज को पीछे ले जा रही थी अब वो कैसे राष्ट्र निर्माण की वजह बन सकती है
कई सारे तर्क आ सकते हैं
हो सकता है बीजेपी कह दे कि राहुल गांधी से मुद्दा छीन लिया
कुछ आईटी सेल वाले कह सकते हैं कि भैया मुसलमान की भी जात पता लग जाएगी
वो जो भीम मीम चलता है वो खत्म हो जाएगा
फिर कहा गया कि सवर्णों को क्रेडिट मिल जाएगा
बहुत आरोप लगता है कि सवर्ण खाए बैठे हैं
किसी ने कहा जाति पर बहस होगी
कश्मीर की बात दब जाएगी
तो कुछ और क्रांतिकारी थे
वो कहे कि भैया विपक्ष जो आज सोचता है ना
वो मोदी जी बहुत पहले सोच लिए थे
2014 में सोचे फलाना फलाना कमेटी बनाई
हालांकि यह भी सच है कि बीजेपी जब विपक्ष में थी तब वो जातिगत जनगणना की बात करती थी
लेकिन सत्ता में आने के बाद उसने इस बारे में बात नहीं की
लेकिन अब गंभीरता से हम भी समझने की कोशिश करते हैं
कि जातिगत जनगणना जब हो रही है तो इसका फायदा किसे होगा चोट किसे पहुंचेगी
बीजेपी का क्या फायदा नुकसान है
बीजेपी का फायदा यह है कि बीजेपी विपक्ष का मुद्दा छीनने और ओबीसी वोट बैंक को खींचने की कोशिश कर सकती है
क्योंकि विपक्ष का यह बहुत बड़ा मुद्दा है
नुकसान यह है कि जो अपर कास्ट है उनमें बीजेपी को नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है
अपर कास्ट चीख-चीख कर कह रहा है कि सारा बीजेपी जो है वो हमारे खिलाफ करती है
वोट हम देते हैं और इनकी सारी पॉलिसी हमारे खिलाफ जाती है
हिंदू राष्ट्र और हिंदू एकता के नैरेटिव को भी नुकसान इससे पहुंच सकता है
विपक्ष का क्या फायदा है
विपक्ष यह कह सकता है कि सरकार भले इनकी है
लेकिन सिस्टम हमारा है
यह हमारा थॉट प्रोसेस था और अब इसे हम कर रहे हैं
नुकसान यह है कि अगर भाजपा ने इसको अच्छे से प्रचार प्रसार कर लिया माहौल बना लिया
तो इसका क्रेडिट अगर भाजपा ले आती है
तो विपक्ष के हाथ से एक बड़ा मुद्दा जो है वो स्लिप हो सकता है
समाज के हिसाब से फायदा यह है कि अब जो नीतियां बनेगी उसमें वास्तविक प्रतिनिधित्व जो है उसकी संभावना है
यानी जिसकी जितनी जाति होगी उस हिसाब से उसका रिप्रेजेंटेशन हो सकता है पॉलिसीज में
नुकसान ये है कि सामाजिक बंटवारा इससे हो सकता है
जातीय तनाव बढ़ सकता है
ये दो धारी तलवार है
समाज का उत्थान भी कर सकती है और समाज को बर्बाद भी कर सकती है
ये इसकी कहानी है
2011 के बाद इस बार पहली बार जातिगत जनगणना का ऐलान हुआ है
लेकिन बड़ी बात यह है कि यह ऐलान जो है यह तब हुआ है जब देश पहलगांव में आतंकवादी हमले के बाद जवाबी कारवाई की उम्मीद कर रहा था
लेकिन मोदी सरकार जो अब तक जातिगत जनगणना को समाज विभाजन की वजह बताकर टाल रही थी
वह अचानक यह क्यों करती है
कई मायने निकल सकते हैं
एक मायने यह निकल रहा है कि हेडलाइन चेंज करनी थी
जनता जो है वो 24 घंटा टीवी अखबार सोशल मीडिया खोले बैठी है कश्मीर का बदला लेने के लिए
और आतंकवादी पकड़े नहीं गए अब तक
पाकिस्तान पर अब तक कोई स्ट्राइक नहीं हुई
और जनता चाहती है कि कुछ ऐसा हो आतंकवादियों को मारा जाए
पाकिस्तान से बदला लिया जाए
तो यह हेडलाइन मैनेजमेंट का हिस्सा हो सकता है
एक दूसरा हो सकता है लॉन्ग टर्म में यूपी बिहार को इंपैक्ट व्हिच इज ऑब्वियस वो तो है ही है
इसमें तो कोई दो राय नहीं है
तीसरा क्या इसके अलावा भी कुछ हो सकता है
क्या कोई ऐसा फैसला आ सकता है जिसमें विपक्ष का जो वोट बैंक है उसे आधा करने की जरूरत हो
विपक्ष की ताकत क्या है
मुसलमान प्लस पिछड़े दलित आबादी
क्या उस तरफ कोई कदम हो सकता है
देखने वाली बात है
लेकिन फिलहाल विपक्ष क्रेडिट युद्ध लड़ रहा है
विपक्ष कह रहा है कि देखो जी हमने पहले ही कहा था
कांग्रेसी कह रहे हैं कि देखो बीजेपी झुकती है
झुकाने वाला चाहिए
राहुल गांधी जैसा फौलादी नेता चाहिए
आरजेडी कह रही है कि देखो तेजस्वी भैया हमारे कह रहे थे हमारी बात मान ली गई
तेजस्वी भैया लालू जी दशकों से संघर्ष कर रहे थे
अखिलेश यादव कह रहे हैं कि पीडीए की जीत है
लेकिन यह क्रेडिट की लड़ाई है
यह वैसे ही है जैसे कई सारे बच्चे एक खिलौने पर लड़ रहे हैं
सवाल यह है कि अगर आंकड़े आए तो क्या विपक्ष 50% आरक्षण की सीमा को तोड़ पाएगा
या फिर बीजेपी इसे अपने तरीके से और क्रेडिट किसको जाएगा
वो जो इसके लिए लड़ रहा था
या वो जो इसने इंप्लीमेंट किया
यह भी देखने वाली बात होगी
लेकिन जो बात स्पष्ट है वो है यूपी बिहार में कौन
जातपात की सियासत यूपी बिहार में जातिगत जनगणना का असर दिखना तय है
आंकड़े आते ही
इसीलिए हर पॉलिटिकल पार्टी ने अपनी-अपनी जाति का परचम लहराना तेज कर दिया है
यहां गणित साफ है
तेजस्वी भैया कह रहे हैं जिसकी जितनी आबादी उसका उतना हक
यही फार्मूला बिहार के बाद यूपी में भी चलेगा
और बिहार विधानसभा इस बार महत्वपूर्ण होगा
शायद बीजेपी भी यह जानती थी कि मंडल 2.0 की आहट है
अगर अब जातिगत जनगणना के आंकड़े सामने आते हैं
तो फिर इसमें भी जबरदस्त पॉलिटिक्स हो सकती है
अगर यह भी पता लगता है कि ऊंची जातियां अल्पसंख्यक है
तो सबका साथ सबका विकास के नारे ज्यादा असर
सबका जात सबका आरक्षण का पड़ेगा
हालांकि अब बीजेपी को इससे कितना फायदा होगा कितना नुकसान होगा यह तो वक्त बताएगा
क्या इससे कश्मीर का मुद्दा गायब होगा
यह भी वक्त बताएगा
लेकिन एक बात जो सोशल मीडिया के सहारे दिख रही है स्पष्ट है
वह यह है कि बीजेपी के समर्थक फिलहाल खिसिया गए
खिसिया गए हैं और वो नाराज होकर भी कई सारे कह
रहे हैं कि सरकार से एनआरसी मांगा, जातिगत जनगणना दे दी। वो कह रहे हैं कि राहुल गांधी कह रहे थे – वो जानते थे कि भाजपा पलट जाएगी। वोट के लिए भाजपा पलट जाती है, यू-टर्न ले लेती है।
हालांकि कुछ मास्टरस्ट्रोक वाले ऐसे हैं जो अभी भी कह रहे हैं कि राहुल गांधी से उसका मुद्दा छीन लिया गया है। यह बढ़िया कहानी है, लेकिन हम सोशल मीडिया के चकल्लस से आगे बढ़कर इसकी गंभीरता समझाते हैं।
ये आंकड़े जो हैं – ये समाज को बदलेंगे या आग लगाएंगे? जातिगत जनगणना कोई साधारण सर्वे नहीं है। 1931 के बाद ओबीसी आबादी का कोई ठोस आधार नहीं है। अगर नए आंकड़े ये बताते हैं कि ओबीसी 60% से 70% हैं, तो फिर 50% आरक्षण की सीमा पर तूफान आ जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का इंदिरा साहनी जजमेंट फिर कटघरे में होगा।
लेकिन खतरा यह है कि ये आंकड़े सियासी हथियार बन सकते हैं। कर्नाटक के सर्वे विवाद इस बात का सबूत है। सरकार को पारदर्शिता बरतनी होगी, वरना ये आंकड़े समाज को जोड़ने की बजाय तोड़ने वाले भी हो सकते हैं।
हालांकि इन सबके बीच में पहलगांव में आतंकवादी हमला चल रहा था, पीएम मोदी सुरक्षा मीटिंग कर रहे थे, और उसी समय जातिगत जनगणना का फैसला आना अपने आप में हैरान करने वाला है। एक तरफ पाकिस्तान के खिलाफ प्लानिंग चल रही थी, वहीं दूसरी तरफ जातिगत जनगणना का मास्टरस्ट्रोक।
यह टाइमिंग बताती है कि सरकार इस मुद्दे को राष्ट्रीय सुरक्षा के शोर में दबाना चाहती थी, ताकि विवाद शायद ज्यादा ना हो। लेकिन सोशल मीडिया ने इसे सुर्खियों में ला दिया।
कुल मिलाकर कहानी यही है कि मोदी सरकार का यह फैसला सियासी चाल वाला भी है, सामाजिक जरूरत भी है। विपक्ष इसे अपनी जीत बता रहा है, बीजेपी इसे अपने नाम करेगी। यूपी-बिहार के चुनावों में जो इसे अच्छे से भुना ले जाएगा, उसके लिए यह गेमचेंजर हो जाएगा।
लेकिन याद रखिएगा – **जाति सिर्फ आंकड़ा नहीं है**। यह हमारी पहचान, हमारे जख्म और हमारे सपनों का हिस्सा है। इसीलिए जब "कौन जात हो?" पूछा जाए, तो क्या सरकार ने यह सोचा कि इसका जवाब समाज को जोड़ेगा या तमाशा बनाकर तोड़ेगा?
सियासत अपनी रोटी सेकेगी, लेकिन जनता के तौर पर हम आपसे यह अपील करेंगे – जब आपसे पूछा जाए "कौन जात?" तब आप उस आग की तपिश से बचने की कोशिश कीजिएगा। क्योंकि सियासत का खेल पुराना है। सियासत इस कदर आवाम पर एहसान करती है – पहले आंखें छीनती है, फिर उन दोनों को चश्मा करती है।
बाकी चुनाव में आप भी पूछ लीजिएगा – खाली जाति पूछेंगे जी, क्या ये भी बताएंगे हुआ क्या था?