OTT की अश्लीलता: एजाज खान का हाउस अरेस्ट शो एक गंदगी है । Ejaz Khan's 'house arrest': An example of cheap popularity

 एजाज खान के 'हाउस अरेस्ट' जैसे शो क्या भारत में डिजिटल अश्लीलता के नए केंद्र बन चुके हैं? इस लेख में जानिए कैसे उल्लू, ऑल्ट बालाजी जैसे प्लेटफॉर्म्स समाज को नैतिक पतन की ओर ले जा रहे हैं और क्यों अब सख्त डिजिटल रेगुलेशन की जरूरत है।



जहां गंदगी को भी खुद से घिन आने लगे, जहां शर्म भी शर्मिंदा होने लगे, उस जगह का नाम है हाउस एरेस्ट शो, एजाज खान का हाउस टेरेस शो। दरअसल वो जगह है जहां पर बेहूदगी को बोल्डनेस का नाम दिया गया है, बेशर्मी को कूल बना दिया गया है और नंगई को यहां पर कंटेंट समझ लिया गया है। यह कोई शो नहीं है, एक डिजिटल वेश्यालय है जहां पर अश्लीलता कंटेंट है और बेशर्मी कॉन्फिडेंस के साथ परोसी जा रही है। आप इसे एक मानसिक महामारी भी कह सकते हैं जहां पर नैतिकता सूली पर लटकाई जाती है, संस्कारों की चिता जलाई जाती है और उस पर टीआरपी की पार्टी मनाई जाती है।


एजाज खान यहां होस्ट हैं जो अनैतिक सामग्री के प्रचारक हैं। कामुकता को कंटेंट की आड़ में परोस रहे हैं और बेहूदगी की मंडी सजाकर उसे ट्रेंडिंग बनाकर दुनिया के सामने रख रहे हैं। अब अगर आपके मन में सवाल आ रहा है कि इतने कठिन शब्दों का इस्तेमाल क्यों किया गया है तो उदाहरण के लिए इस शो के एक एपिसोड में एक लड़की से कहा गया कि तुम कपड़े उतार दो। फिर बाकी कंटेस्टेंट एजाज खान के साथ ताली पीटने लगे, हूटिंग करने लगे। ये सब कुछ रिकॉर्ड हुआ और उसे YouTube पर पब्लिकली डाल दिया गया।



सवाल यह है कि क्या आधुनिकता के नाम पर नैतिकता को छोड़ना ही जायज है? ऐसे शो समाज में कैंसर हैं जो धीरे-धीरे सड़ाते हैं और वो दर्शक जो इस गंदगी को लगातार देखते हैं, वो इस गंदगी के मरीज बन जाते हैं। और इसीलिए इस शो को आप हाउस अरेस्ट नहीं बल्कि एथिक अरेस्ट कह दीजिए।


कुछ दिनों पहले समय रैना का शो जिसे अश्लीलता के लिए निशाना बनाया गया, लेकिन यकीन मानिए इस हाउस अरेस्ट की घिनौनी हरकतों के सामने समय रैना का शो कहीं एक्सिस्ट नहीं करता। समय रैना के कंटेंट में आपत्तिजनक चीजें थीं, लेकिन एजाज खान का शो सीधे-सीधे सॉफ्ट पोर्न की श्रेणी में आता है। एजाज खान का शो लस्ट ड्रिवन नॉनसेंस है जिसे बोल्डनेस की आड़ में परोस दिया गया है। इंडियाज गॉट लैटेंट जिसको लेकर हम सब ने इतना शोर मचाया वो सोचने पर मजबूर करता था लेकिन हाउस अरेस्ट आपकी सोच को कुंद कर देता है।


इंडियास गॉट लैटेंट में अश्लीलता की सीमाओं को तोड़ने का जिक्र था लेकिन हाउस अरेस्ट ने गंदगी को ही रिकॉर्ड बना दिया है। समय के शो में रणवीर ने जो कल्पनाएं की थीं, एजाज के शो में उसे हकीकत बनाकर परोसा जा रहा है। इस शो की कहानियां सिर्फ बेडरूम तक सीमित हैं, औरतें सिर्फ जिस्म और पुरुष वासना बनकर रह गए। ऑल्ट बालाजी, उल्लू और ऐसे तमाम प्लेटफॉर्म हैं जो इसे घर-घर तक पहुंचा रहे हैं।


इन शोज में पड़ोसी, नौकर के साथ अनैतिक संबंध, घरवालों के साथ संबंध और समाज की गंदगी को लगातार परोसा जा रहा है। इसका असर यह है कि टियर-2 और टियर-3 शहरों में खासतौर पर ऐसे ऐप्स की पहुंच बहुत ज्यादा बढ़ गई है जो समाज को नीचे गिराने की एक सोची-समझी साजिश है।


पश्चिमी देशों में भी लोग पोर्न देखते हैं लेकिन वहां पोर्न और मनोरंजन के बीच में एक रेखा होती है। भारत में ऑल्ट बालाजी और उल्लू जैसे ऐप्स ने इन सबको मिटा दिया है और इसीलिए यह आधुनिकता नहीं, नैतिक पतन है जिसे हमने प्रोग्रेस का नाम दे दिया है।


भारत वो देश है जहां कभी संस्कृति और संस्कार की बातें बड़ी गर्व से होती थीं लेकिन आज हम उस दलदल में फंस चुके हैं जहां हाउस अरेस्ट, उल्लू, ऑल्ट बालाजी और ऐसे तमाम सॉफ्ट पोर्न प्लेटफॉर्म को मनोरंजन का टैग दे दिया गया है।


पश्चिमी देशों में एमपीए रेटिंग सिस्टम है लेकिन भारत में ऐसी कोई रेखा नहीं है। भारत का मॉडर्न बनना कोई गुनाह नहीं है, लेकिन अगर मॉडर्न बनने के नाम पर आप अपनी आत्मा, अपनी संस्कृति और अपनी शर्म को बेच देंगे तो यकीन मानिए यह प्रगति नहीं, पतन कहलाएगा। और यही पतन एजाज खान के शो के जरिए निकलकर आ रहा है।


वैसे हम आपको बता दें कि एजाज खान का शो एक जरिया बना उस बड़ी खबर को उठाने का क्योंकि बीते कुछ सालों में उल्लू, ऑल्ट बालाजी, कुकू जैसे तमाम प्लेटफॉर्म हर घर को डिजिटल गटर बना रहे हैं।


ऑल्ट बालाजी जो कभी बोल्ड कहानियों के लिए जाना जाता था, अब सॉफ्ट पोर्न का पर्याय बन चुका है। इनके तमाम शो रिश्तों को यकृत करते हैं, जिसमें बच्चे और परिवार संवेदना नहीं बल्कि कामुकता के चश्मे से देखने लगे हैं। इनका नारा बन सकता है — “नो स्टोरी, जस्ट एक्शन”।


यह प्लेटफॉर्म सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि सांस्कृतिक महामारी फैला रहे हैं। भारत में पोर्न की खपत बड़ी तेजी से बढ़ रही है। Statista की रिपोर्ट के अनुसार भारत फिलहाल दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा पोर्न कंज्यूमर देश है। औसतन एक भारतीय युवा हफ्ते में 3.5 घंटे से अधिक पोर्न देखता है।


Pornhub की 2023 रिपोर्ट के अनुसार भारत के ट्रैफिक में 52% लोग मोबाइल से पोर्न देखते हैं। 18 से 24 साल की उम्र के 78% युवा नियमित तौर पर पोर्न कंटेंट कंज्यूम करते हैं। उल्लू, ऑल्ट बालाजी, कुकू जैसे ऐप्स ने 2023 में 15 मिलियन से अधिक सब्सक्राइबर्स हासिल किए थे।


बढ़ती खपत कई मायनों में चिंताजनक है। जैसे मानसिक स्वास्थ्य पर असर, आत्मसम्मान में कमी, यौन धारणा पर गलत प्रभाव, वास्तविक रिश्तों की समझ में भ्रम आदि। यह लत बड़ी मुश्किल से छूटती है। पार्टनर के साथ भावनात्मक जुड़ाव, यौन संतुष्टि भी घट जाती है।


यौन शिक्षा की कमी के चलते कई बार बच्चों में गलत धारणाएं बन जाती हैं। सबसे बड़ी बात यह कि इंसान लस्ट को लव समझने लगता है। रिश्ते टूटने लगते हैं। महिलाएं रियल में भी कैरेक्टर नहीं बल्कि बॉडी बनकर देखी जाने लगती हैं। इससे यौन अपराधों में भी वृद्धि की संभावना होती है।


हालांकि इसका सीधा लिंक साबित नहीं हुआ है, लेकिन यह बहस का विषय है कि क्या पोर्न देखने के चलते ख्यालों का असर किसी महिला के साथ अपराध में रूपांतरित होता है। किशोरों में यौन शिक्षा की कमी के चलते भारी भ्रम होता है। डिजिटल सुरक्षा और प्राइवेसी पर संकट और गहरा हो जाता है।


अब सवाल उठता है कि जब ये बातें हम सब जानते हैं तो सरकार क्यों नहीं कुछ करती? सरकार को भी सब पता है लेकिन ओटीटी पर रेगुलेशन नहीं आया। सुप्रीम कोर्ट ने 2025 में कहा था कि ओटीटी पर रेगुलेशन जरूरी है लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।


आज सुबह से एजाज खान का वीडियो वायरल हो रहा है और सोशल मीडिया पर मंत्रीजी को ट्वीट्स से घेर लिया गया है, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। सरकार यह सब जानती है, इन एप्स को बनाने वाले सरकार के साथ तस्वीरें खिंचवाते हैं, अवॉर्ड लेते हैं। फिर भी सब अनदेखा किया जाता है।


समय रैना के मामले में महाराष्ट्र सरकार पूरी तरह एक्टिव थी लेकिन एजाज खान के शो जैसे गंभीर मामले में अब तक चुप्पी बनी हुई है। यह सबसे ज्या-दा परेशान करने वाली बात है।


क्योंकि शिकायतें मिली है चाहे वह सूचना प्रसारण मंत्रालय हो या बाकी इस देश के सांसद, विधायक, मंत्री, नेता। लेकिन इसके बावजूद ये एप्स बेलगाम हैं। सवाल फिर यही कि क्या सरकार को बच्चों के दिमाग और समाज के मूल्यों की कोई भी चिंता नहीं?


18 ओटीटी एप्स पर 2024 में बैन लगाया गया, लेकिन इसके बावजूद सवाल यह है कि उस वक्त भी ऑल्ट बालाजी और उल्लू जैसे ऐप आखिर कैसे बच गए? क्या इसके पीछे की कोई कहानी है जो धन संपदा से जुड़ती है? पता नहीं, लेकिन अगर है तो वह भी अफसोसजनक है।

सवाल यह भी कि रेगुलेशन का इंतजार कब तक होगा? और उससे बड़ा सवाल जो आज हम छोड़ जा रहे हैं वो यह है कि जब इतने एप्स पर बैन लगाया गया और यहां नहीं लगा, तो क्या सरकार भी इस गंदगी के धंधे में आर्थिक तौर पर हिस्सेदार है?


यह सवाल उठेगा, यह सवाल इसलिए अब उठेगा क्योंकि इस पर बैन नहीं लगाया गया है। कुल मिलाकर सवाल यही सबसे बड़ा है कि डर्टी पिक्चर रोके कौन? क्योंकि हाउस अरेस्ट, गंदी बात जैसी डर्टी पिक्चर्स पर सब चुप हैं। सरकार चुप है। सेंसर बोर्ड जो है वह तो ऐसा लगता है कि नकारा है। समाज जो है वो पूरी तरह से सो रहा है।


समय रहते वाले मामले में तमाम सांसद सामने आए थे, लेकिन इस बार सांसदों, विधायकों ने भी मानो दही जमा रखी है। मुंबई पुलिस क्या इस बार सिर्फ ट्वीट देखेगी या पिछली बार की तरह एक्शन करेगी? क्योंकि जब नैतिकता का जनाजा निकल रहा है, तो यह सभी लोग तमाशबीन हैं।

और सवाल यही है कि अगर अब हम नहीं जागे, तो फिर यह गंदगी हमारे घरों में, हमारे दिमागों में और हमारे बच्चों के भविष्य में घुस जाएगी। अब क्या कर सकते हैं? क्योंकि समस्या तो हमने बता दी।


आप में से कई बुद्धिजीवी होंगे जो हम पर भी सवाल करेंगे कि भाई साहब सिर्फ शिकायत करने से कुछ नहीं होता, समाधान क्या है?

तो समाधान वैसे तो निकालना सरकार का काम है, लेकिन फिर भी कुछ सुझाव हम दे देते हैं।

**सुझाव नंबर एक**

ओटीटी कंटेंट रेगुलेशन बिल लाना चाहिए। सरकार को तुरंत कड़ा कानून लाना चाहिए।


**दूसरा**

एक डिजिटल बोर्ड बनाना चाहिए। डिजिटल बोर्ड के जरिए आप लगातार नजर रख सकेंगे कि सोशल मीडिया पर क्या जा रहा है, कैसे जा रहा है, और साथ में पैरेंटल कंट्रोल और कंटेंट फिल्टर हो। यानी मां-बाप जब बच्चों को मोबाइल दें तो वह यह तय कर सकें कि किस तरह का कंटेंट बच्चों के पास नहीं पहुंचेगा। कौन-कौन सी चीजें हैं जो वो बैन कर सकते हैं।


**तीसरा**

एप्स पर सेंसरशिप लगाना। ऑल्ट बालाजी, उल्लू जैसे एप्स पर रोक या सख्त नियम लगाए जाएं।

**सबसे बड़ी बात**

पब्लिक अवेयरनेस हो। स्कूल-कॉलेज से लेकर घरों में डिजिटल स्वच्छता की बात की जाए।


और **अंत में**

प्लेटफॉर्म्स की भी अकाउंटेबिलिटी हो। जो भी ऐप इस तरह का कंटेंट दे रहे हैं या समाज को गंदा करने की कोशिश कर रहे हैं, उनको इसके लिए जवाबदेह ठहराया जाए। या तो उन्हें सुधरने का मौका दिया जाए, या अगर जरूरत लगे तो ऐसे प्लेटफॉर्म्स को बंद कर दिया जाए।


भविष्य में डिजिटल लाइसेंसिंग को भी लेकर ध्यान रखा जाए। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को लाइसेंस के लिए नैतिक मानकों का पालन करना अनिवार्य हो। जैसे टीवी चैनल के लिए जब अप्लाई करते हैं तो एक लंबी प्रक्रिया होती है। सरकार हजारों चीजें देखती है। ऐसे ही जब किसी को आप डिजिटल लाइसेंसिंग दे रहे हो, तब वहां पर भी उन तमाम मानकों को सुनिश्चित करें कि उसका पालन हो।

और जो ना कर रहा हो या जिसका इतिहास उससे जुड़ा हो या ये भी तय हो कि क्या दिखाने वाला है, उसके आधार पर वह लाइसेंस दिया जाए।


रिपोर्टिंग तंत्र को भी मजबूत किया जाए। उपयोगकर्ताओं के लिए एक सरल गोपनीय पोर्टल बनाया जाए ताकि अगर कोई व्यक्ति किसी कंटेंट को देखने से असहज हो रहा है या सरकार को इसकी सूचना देना चाहता है, तो वह आसानी से अपनी बात सरकार तक पहुंचा सके।

अगर सरकार इन चीजों को करती है तो हो सकता है भारत भविष्य में डिजिटल साक्षरता की ओर आगे बढ़े।


किसी समस्या के समाधान के लिए सबसे जरूरी होता है उस समस्या को पहचानना। और अब ऐसे प्लेटफॉर्म्स, ऐसे शोज़ भारत में डिजिटल महामारी बन गए हैं। अगर आप इसे स्वीकारेंगे नहीं, तो समाधान की ओर नहीं बढ़ पाएंगे। और अगर आप इसे महामारी मानते हैं तो फिर इन कदमों के जरिए आप भारत में चीजें बेहतर कर सकते हैं।

**इसके अलावा**

आप कुछ चीजें अपने स्तर पर भी कर सकते हैं, जैसे:


* **यौन शिक्षा**: स्कूलों में वैज्ञानिक और नैतिक दृष्टिकोण से यौन शिक्षा दी जाए, जैसा सिंगापुर और स्वीडन में होता है।

* **डिजिटल डिटॉक्स**: स्कूल और कॉलेज में डिजिटल स्वच्छता अभियान चलाया जाए।

* **काउंसलिंग**: जिन्हें इस चीज की लत लग गई है, उनके लिए गोपनीय सहायता कराई जाए।

* **पारिवारिक भूमिका**: माता-पिता बच्चों के डिजिटल उपयोग पर नजर रखें, संवाद करें।

* **पैरेंटल कंट्रोल ऐप्स**: जैसे नेट नैनी का उपयोग करें।

* **सामाजिक जागरूकता**: मीडिया, एनजीओ और समाज मिलकर नैतिकता अभियान चलाएं।

अब अगर आपके मन में सवाल है कि यह फैला इतना कैसे, इतनी बड़ी समस्या कैसे हो गई, तो इसका जवाब है — **पैसा**।


भारत में पोर्न अगर आज एक महामारी बना है या उल्लू, ऑल्ट बालाजी जैसे प्लेटफार्म इसके डीलर बने हैं, तो इसके पीछे वजह है पैसा। ये एप्स सस्ते सब्सक्रिप्शन और सॉफ्ट पोर्न के नाम पर अरबों रुपए कमा रहे हैं। छोटे-छोटे शहरों में इनकी पहुंच ने युवाओं को गंदगी का आदि बना दिया है।


उदाहरण के तौर पर 2023 में भारत का एडल्ट एंटरटेनमेंट बाजार लगभग **13,400 करोड़ रुपए** का था, और यह **9.3%** की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है। इसकी वजह है डिजिटल पहुंच — हर व्यक्ति के पास मोबाइल है, सस्ता इंटरनेट है, स्मार्टफोन है।

भारत में इंटरनेट पोर्नोग्राफी की लोकप्रियता काफी तेजी से बढ़ी है। टेलीकॉम कंपनियों के लिए डाटा राजस्व एक बड़ा स्रोत बन गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, जब पोर्न बैन लगाया गया तो टेलीकॉम कंपनियों को 30 से 70% तक डाटा ब्राउजिंग का नुकसान हुआ।


हालांकि वो बैन सिर्फ नाम का था। आज भी भारत में पोर्न और इस जैसे शोज खुलेआम दिख रहे हैं। फिर भी 30 से 70% नुकसान का आंकड़ा बताता है कि अगर यह फुल्ली बैन हो जाए तो कितना बड़ा आर्थिक नुकसान होगा।


सवाल फिर यही है कि क्या इसीलिए सरकार चुप है? क्योंकि डाटा कंपनियों को जो पैसा मिलता है, या सरकार को जो टैक्स मिलता है, वो इस "गंदगी" से आता है?

मोबाइल ऑपरेटरों के लगभग 40% मुनाफे का स्रोत पोर्न देखने से जुड़ा है।


**बस यही कहेंगे**

अगर आज आपने अपने बच्चों के मोबाइल में नहीं झांका, तो कल उनकी सोच में झांकने लायक नहीं रहेंगे।

‘हाउस अरेस्ट’ जैसे शोज़ सिर्फ शो नहीं, भारतीय समाज के गिरते संस्कारों की निशानी हैं।

इन्हें देखकर चुप रहना उस बीमारी को बढ़ावा देना है जो आने वाली पीढ़ी को अंदर से खोखला कर देगी।

**इसलिए उठिए, विरोध कीजिए**।

सरकार से जवाब मांगिए।

बच्चों से संवाद कीजिए।

क्योंकि अगर आज यह डर्टी पिक्चर नहीं रुकी, तो कल यह हर घर का हिस्सा बन जाएगी।


**अब नहीं तो फिर कभी नहीं।**

**से रेगुलेशन पर जवाब मांगिए परिवार में**

बच्चों से संवाद कीजिए क्योंकि अगर आज यह डर्टी पिक्चर नहीं रुकी तो कल यह हर घर हर परिवार का हिस्सा बन सकता है। इससे पहले कि बीमारी आपके घर को सड़ा दे, हम आपसे कहेंगे—उठाइए मोबाइल, अनइंस्टॉल कीजिए, अनफॉलो कीजिए अश्लीलता।

अनलॉक कीजिए उस सोच को जहां पर इसे मॉडर्न नहीं कहा जाएगा, न्यू नॉर्मल नहीं बनाया जाएगा, इसे आधुनिकता का नाम नहीं दिया जाएगा।

क्योंकि अब नहीं तो फिर कभी नहीं, कभी नहीं। समाज की चुप्पी इस गंदगी को खाद पानी दे रही है।

ट्वीट्स आ रहे हैं लेकिन सड़कों पर, कोर्ट में, घरों में कोई हलचल नहीं है। और यह आप इस बात को जानते हैं, इसी वजह से यह इतने बेलगाम हुए हैं।

लेकिन सवाल यह है कि क्या आप अपने बच्चों के लिए लड़ेंगे? क्या अपने मूल्यों के लिए लड़ेंगे?


क्योंकि अगर आप आज खामोश रहे तो यही पिक्चर आपकी सभ्यता का आखिरी पिक्चर बन जाएगी।

**जय हिंद, जय भारत।**




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