Why is IRAN Rejecting ISLAM? एक इस्लामी सोच ने कैसे बर्बाद कर दिया पूरे ईरान को

 Why is IRAN Rejecting ISLAM? एक इस्लामी सोच ने कैसे बर्बाद कर दिया पूरे ईरान को


आज जो ईरान ऐसा दिखता है ना वो आज से 45 साल पहले कुछ ऐसा दिखता था। लड़कियां बिना किसी हिजाब के मॉडर्न वेस्टर्न आउटफिट्स पहना करती थी। मेल्स-फीमेल्स साथ में पार्टी किया करते थे। स्कूल्स-कॉलेजेस में लड़के-लड़कियां साथ में पढ़ते थे और यहां तक कि लड़कियां कार भी ड्राइव करती थी। नाउ आई नो कुछ लोगों के लिए यह काफी शॉकिंग रहेगा, बट दिस इज एक्चुअली ट्रू। लेकिन फिर इसके बाद खुद ईरानियन लोगों ने ही देश से मॉडर्निज्म और सेक्युलरिज्म को हटा दिया और आयतुल्ला खोमेनी को लीडर के तौर पर चुना, क्योंकि उस वक्त उन्हें लग रहा था कि ईरान बहुत ही ज्यादा वेस्ट की तरफ बढ़ता चला जा रहा है और इसीलिए उन्हें अपने कोर इस्लामिक रूट्स की तरफ अपने कदम बढ़ाने चाहिए।


और आज ईरान वापस से हार्डकोर इस्लामिक वैल्यूस को रिजेक्ट करके सेकुलरिज्म की पनाह चाह रहा है। सालों से कुछ ऐसे दिखने वाला ईरान, जो आज तक एक हार्ड कोर इस्लामिक नेशन था, लेकिन अभी हाल फिलहाल में डॉक्टर मसूद पेसेशियान, एक रिफॉर्मिस्ट यानी कि एक लिबरल सोर्स के कैंडिडेट जिनकी आईडियोलॉजी बिल्कुल भी ऑर्थोडॉक्स इस्लामिक वैल्यूस को सपोर्ट नहीं करती, उन्होंने वहां के एक इस्लामिक लीडर सैद जलीली को 40 लाख वोट से हरा दिया। कैन यू बिलीव दैट? आज ईरान में हालत कुछ ऐसी हो गई है कि वहां पर 500 मस्जिद बंद करने पड़ गए हैं। ईरान की सड़कों में औरतें जगह-जगह पर बुर्खा जला रही हैं, सरकार के खिलाफ विद्रोह कर रही हैं। दीज़ आर द वीडियोज ईरान डजंट वांट यू टू सी — पुलिस फायरिंग इन द स्ट्रीट्स, वीमेन कटिंग देयर हेयर, बर्निंग हिजाब। पीपल हैव टेकन टू द स्ट्रीट्स अक्रॉस ईरान, एंग्री एट द गवर्नमेंट। सो क्या इसका मतलब ईरान अब इस्लाम को रिजेक्ट कर रहा है? अब आखिर ऐसा क्यों? वेल, ईरान की कहानी काफी ज्यादा इंटरेस्टिंग है और इससे बहुत कुछ हम इंडियंस को भी सीखने मिल सकता है। इनफैक्ट इस पूरे रेवोल्यूशन के पीछे एक 22 साल की लड़की है जिसने एक 45 साल पुराने इस्लामिक रेजीम को उखाड़ के फेंका है।


सो, 19th मई 2024 को ईरानियन प्रेसिडेंट इब्राहिम रईसी की डेथ हो गई, जो कॉम्बिडेंट क्लर्जी एसोसिएशन ग्रुप के हेड थे। अब सीसीए कोई पार्टी नहीं है, बल्कि ईरान के क्लेरिक सिस्टम का एक ग्रुप है जो हार्डकोर इस्लामिक आईडियोलॉजी को ईरान में प्रमोट करते हैं। अब रईसी के डेथ के बाद 5 जुलाई को ईरान में वापस से इलेक्शंस हुए और इस इलेक्शन में, क्वाइट सरप्राइजिंगली, डॉक्टर मसूद पेजेशियान, एक रिफॉर्मिस्ट यानी कि लिबरल सोर्स के कैंडिडेट, जिनकी आईडियोलॉजी बिल्कुल भी ऑर्थोडॉक्स इस्लामिक वैल्यूस को सपोर्ट नहीं करती, उन्होंने हार्डकोर इस्लामिक लीडर सैयद जलीली को कुछ गिने-चुने नहीं, बल्कि 40 लाख वोट से हरा दिया।


आखिर कैसे? वेल, डॉक्टर मसूद के लिए मेजर विनिंग फैक्टर्स थे उनके दो प्रॉमिसेज जो उन्होंने ईरान की जनता से किए — एक, कि वो वेस्ट के साथ ईरान के रिलेशंस वापस से अच्छा कर देंगे जिससे ईरान पर जो सैंक्शंस लगे हैं वो खत्म हो जाएंगे। और दूसरा प्रॉमिस — वो ईरान में एक फ्री माहौल बनाएंगे, यानी कि जो ऑर्थोडॉक्स लॉज हैं, जैसे हिजाब लॉज — इन सारे कानूनों को वो बैन कर देंगे जो भी जनता को बांधने की कोशिश कर रहे हैं। बट अब सवाल ये आता है कि 45 साल पहले तो ईरानियंस ने खुद ही ये वाला रूट चुना था, राइट? तो अब ईरानियंस को अचानक से उनके ही रिलीजन से क्या प्रॉब्लम हो गई है? आखिर ईरानियंस आज मॉडर्निज्म को क्यों एक्सेप्ट करना चाहते हैं? वेल, इसका जवाब जानने के लिए हमें ईरान के इतिहास को थोड़ा समझना होगा।


शुरुआत करते हैं 1979 से। जैसे मैंने इंट्रो में बताया था, ईरान कंपेरेटिवली एक काफी मॉडर्न देश हुआ करता था और आज जैसे वहां पर क्लोथिंग, ड्राइविंग और बेसिक चीजों को लेकर रेस्ट्रिक्शंस नहीं हुआ करते थे। और इसके पीछे का मेन रीजन था ईरान के शाह रजा पहलावी का लिबरल रेजीम। शाह रजा पहलावी ईरानियंस की हिस्ट्री में एक मेजर प्लेयर हैं। उन्होंने अपने रेजीम में ईरान के मॉडर्नाइजेशन के लिए स्पेसिफिकली 1960 में "वाइट रेवोल्यूशन" को इंट्रोड्यूस किया था, जिस प्रोग्राम के अंडर उन्होंने पूरे ईरान को वेस्टर्न कंट्रीज की तरह एक मॉडर्नाइज्ड और डेवलप्ड कंट्री बनाने की कोशिश की। इसी की वजह से उन्होंने अपने देश में इंडिया के आईआईटीस की तरह ईरान में भी आर्य मेहर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी और एम्स के जैसे पहलावी यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेडिकल साइंसेज बनाए, ताकि ईरान भी साइंस एंड टेक्नोलॉजी के फील्ड में रैपिडली ग्रो कर सके।


आल्सो, वो यह भी चाहते थे कि काफी सारे ईरानियन स्टूडेंट्स विदेश में भी जाकर पढ़ें, हायर एजुकेशन के लिए। तो इसके लिए उन्होंने काफी सारे स्कॉलरशिप्स देना चालू किया, जिससे कि ब्राइट ईरानियन स्टूडेंट्स ईरान गवर्नमेंट के एक्सपेंस से यूएस जैसे कंट्रीज में पढ़ाई करने जाएं और ईरान की डेवलपमेंट में कंट्रीब्यूट कर सकें। शाह रजा पहलावी का ऐसा मानना था कि ईरान के फ्यूचर लीडर्स एक पढ़े-लिखे मॉडर्न सोच वाले होने चाहिए। सो यह उस वक्त के शाह का विज़न था ईरान के लिए। बाय द वे, ही वाज़ ऑल्सो द लास्ट शाह — जिसका मतलब वो लास्ट रूलर थे ईरान के। और अगर उस वक्त के ईरान के फॉरेन रिलेशंस की बात करें, तो आप बिलीव नहीं करोगे — आज जो ईरान और यूएस एक दूसरे के इतने बड़े दुश्मन हैं, उस समय यूएस-ईरान रिलेशंस इतने अच्छे हुआ करते थे कि यूएस ईरान को पूरे मिडिल ईस्टर्न रीजन में अपना सबसे क्लोजेस्ट एलाय मानता था।


1970 में ईरान खुद यूएस के वेपन्स का लार्जेस्ट परचेसर था। और इनका कोऑपरेशन सिर्फ मिलिट्री अलायंस और एड तक ही लिमिटेड नहीं था, बल्कि यूएस प्रेसिडेंट आइजनहोवर ने तो खुद रजा पहलावी के साथ मिलकर साल 1967 में ईरान की कैपिटल सिटी तेहरान में "Atoms for Peace" प्रोग्राम शुरू किया था, और फिर वहीं पर ईरान का न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर भी बनवाया। इनफैक्ट, यूएस तो उनके लिए मल्टीपल न्यूक्लियर पावर प्लांट्स भी बनाने वाला था। सो बेसिकली, यूएस-ईरान का अलायंस काफी स्ट्रॉन्ग था उस वक्त और शाह के रेजीम में ईरान का एक ऑल-राउंड डेवलपमेंट हो रहा था। वहां पर लार्ज स्केल इंडस्ट्रियल और इंफ्रास्ट्रक्चरल प्रोजेक्ट्स डेवलप किए जा रहे थे और इनफैक्ट शाह तो 50 साल पहले ही ईरानियन स्पेस एजेंसी बनाने के लिए नासा जैसी एजेंसी के साथ कोलैबोरेशन भी करने लग गए थे।


बट अनफॉर्चूनेटली यह हो पाता इससे पहले ईरान के एक रिलीजियस लीडर आयतुल्ला खोमेनी ने 1979 में द इनफेमस ईरानियन रेवोल्यूशन छेड़ दिया। उन्होंने रिलीजन के बेसिस पर एक ऐसा नैरेटिव बनाया कि पहलावी एक यूएस एजेंट है और वो ईरानियन रिलीजन और कल्चर को खराब कर रहा है, नष्ट करना चाहता है। और इस नैरेटिव से बेसिकली खोमेनी ने लोगों के रिलीजियस इमोशंस को यूज करके इवेंचुअली ईरान को एक इस्लामिक रिपब्लिक डिक्लेअर कर दिया और शाह के रिजीम को एंड कर दिया, जिसके बाद शाह को अपनी जान बचाने के लिए यूएस भागना पड़ा। जैसे ही शाह को यूएस में शरण मिल गई, यहां पर आयतुल्लाह खोमेनी के रेवोलशरीज़ ने तेहरान में स्थित यूएस एंबेसी में घुसकर 50 अमेरिकनंस को होस्टेज बना लिया। अब जाहिर है यूएस इससे काफी नाराज हो गया और इसी की वजह से यूएस ने ईरान पर साल 1979 में पहला इकोनॉमिक सेंक्शन लगा दिया।



इसके बाद इसके रिस्पांस में खोमेनी ने अपनी गलतियों को सुधारने के बजाय उल्टा यूएस को ही पूरे ईरान और मिडिल ईस्ट में "द ग्रेट सैटन" और एंटी-इस्लामिस्ट कहकर बदनाम करना शुरू कर दिया। इसके बाद फिर ईरान ने मिडिल ईस्ट रीजन में रेडिकल इस्लामिक ग्रुप्स को फंड और बैक करना भी शुरू कर दिया जैसे हिस्सबुल्ला और आईआरजीसी। और आज तो हालत ऐसी हो गई है कि ईरान ने पूरे मिडिल ईस्ट रीजन में शिया-सुन्नी का ऐसा मेस फैला दिया है कि इस रीजन में कोई भी मुस्लिम पीसफुली नहीं रह पा रहा। सो बेसिकली ईरान की इन्हीं एक्टिविटीज़ की वजह से आज तक यूएस ने उन पर न्यूक्लियर सेंक्शंस से लेकर ऑयल सेंक्शंस और हर किस्म के सेंक्शंस लगा कर रखे हैं, जिसकी वजह से उनकी इकॉनमी का बुरा हाल हुआ पड़ा है और यह ब्रंट किसी और को नहीं बल्कि ईरानियन लोगों को फेस करना पड़ रहा है। अब खोमेनी की सरकार आने के बाद तो ईरान में कंप्लीट शरिया कानून लागू हो गया, जिसके तहत आज तक ईरान में एक लड़का और लड़की पब्लिकली हाथ में हाथ डाल के नहीं चल सकते, साथ में ट्रैवल भी नहीं कर सकते। उनके पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन जैसे बस और ट्रेंस में भी जेंडर सेग्रगेशन फॉलो किया जाता है।


बेसिकली वहां पर मेल्स और फीमेल्स को कंपलसरीली सेपरेट कंपार्टमेंट्स में ट्रैवल करना पड़ता है। यहां तक कि वहां पर मेल्स और फीमेल्स के सेपरेट पार्क्स तक बनाए गए हैं। अब कपड़ों में भी काफी सारे रेस्ट्रिकशंस हैं। शरिया लॉ के मुताबिक वहां पर हर औरत को ईरानियन ड्रेस कोड को फॉलो करना पड़ता है, जिस ड्रेस कोड के मुताबिक फीमेल्स को वहां पर कंपलसरीली हिजाब और लूज कपड़े पहनने पड़ते हैं जो उनकी पूरी बॉडी को कवर कर सके। और मेल्स को फुल स्लीव्स और फुल पैंट्स पहनना कंपलसरी है। वहां पर रेस्ट्रिक्शन कुछ इस कदर है कि वहां पर एक मेल और फीमेल पब्लिकली हैंडशेक भी नहीं कर सकते। अगर हैंडशेक करते हुए देख लिया गया तो सीधे उन्हें जेल हो जाती है। इवन उनके फीमेल एमपीस को भी इस क्राइम के लिए जेल की सजा है। और यह सभी रूल्स को कोई तोड़े नहीं, इसका ध्यान रखने के लिए ईरान में मोरल पुलिस घूमती है। प्लस उन्होंने जगह-जगह पर कैमरा भी इंस्टॉल करके रखे हैं जो यह मॉनिटर करते हैं कि कोई भी शरिया लॉ ना तोड़ सके, और अगर कोई ऐसा करता हुआ दिख गया तो सीधा उसे जेल हो जाती है जहां पर उसे टॉर्चर किया जाता है।


अब ऐसी सोसाइटी में ये ऑब्वियस है Facebook, Twitter और YouTube जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स तक बैन हैं। लेकिन सबसे बड़ी हिप्पोक्रेसी क्या है बताऊं? ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्ला खोमेनी की खुद की ग्रैंड डॉटर वेस्टर्न आउटफिट में एक शॉर्ट ड्रेस में फॉरेन कंट्रीज में एंजॉय करती हुई दिखी। सो अब आप खुद ही सोचो, खोमेनी के लिए इस्लाम और इस्लामिक रूल्स तो सिर्फ एक बहाना है लाखों लोगों को डरा धमकाने के लिए, उन पर रूल्स थोपने के लिए। और यही पॉलिटिक्स का असली चेहरा है — लोगों को एक अलग चेहरा दिखाया जा रहा है, उनके रिलीजियस सेंटीमेंट से खेला जा रहा है और असली रियलिटी कुछ और है। और यह एक्चुअली में कोई नई बात नहीं है। अगर आप इतिहास के पन्ने पलट कर देखोगे तो आप देखोगे यूजुअली हर एक डिक्टेटर धर्म या किसी और आइडियोलॉजी के नाम पर पावर को अपने हाथ में कंसंट्रेट कर लेता है और फिर उसका फायदा उठाता है अपने हिसाब से।


सो इन्हीं सब एट्रोसिटीज और हिपोक्रेसी के वजह से ईरान की जनता परेशान हो गई है। इतने रेस्ट्रिक्शंस में आखिर कोई कैसे जी सकता है? खास करके वो देश जो कि 45 इयर्स पहले इतना लिबरल हुआ करता था। जनता ने ये भी देख लिया कि डेवलपमेंट के नाम पर भी यहां पर कुछ नहीं हो रहा है। ना तो फॉरेन रिलेशन स्ट्रांग हो रहे हैं, ना तो इन्फ्लेशन कम हो रहा है। सिर्फ धर्म के सहारे ही लोगों को रखा जा रहा है। और इसीलिए जनता अब वाकई में परेशान हो गई है — जिस वजह से इस्लामिक फंडामेंटलिस्ट हार गए। अब बात करते हैं इस पूरे रेवोल्यूशन के पीछे एक 22 साल की लड़की ने कैसे मेजर रोल प्ले किया।



इस पूरे रिजीम चेंज और कह सकते हैं आइडियोलॉजिकल शिफ्ट में सबसे इंपॉर्टेंट रोल एक 22 साल की लड़की महसा अमीनी ने प्ले किया जिसने 45 इयर्स पुरानी रूढ़िवादी सोच को उखाड़ फेंका। एक्चुअली हुआ कुछ यूं कि ईरान की मोरल पुलिस ने महसा को अरेस्ट किया था सिर्फ इसीलिए क्योंकि उसने हिजाब ईरानियन ड्रेस कोड के अकॉर्डिंग नहीं पहना था। उसको अरेस्ट करके महसा को इतनी बुरी तरीके से पीटा गया कि अंत में उसकी मौत हो गई — जस्ट कंसीडर: मौत हो गई पनिशमेंट से सिर्फ इसलिए क्योंकि उसने हिजाब ठीक तरीके से नहीं पहना था। दैट वास इट।


और इसीलिए महसा की डेथ ने ईरान की जनता के लिए एक स्पार्क का काम कर दिया जो ऑलरेडी इस ऑर्थोडॉक्स आइडियोलॉजी से परेशान हो चुके थे। इस मुद्दे पर अपना कठोर विद्रोह दिखाने के लिए काफी सारे ईरानियंस रास्ते पर उतर गए। और इन प्रोटेस्ट में सबसे आगे थी ईरानियन औरतें। इस प्रोटेस्ट को लीड किया स्कूल गर्ल्स ने, जहां पर उन्होंने औरतों के सिविल और पॉलिटिकल राइट्स के लिए आवाज उठाई और ईरानियन ड्रेस कोड के अगेंस्ट उन्होंने अपने हिजाब जलाने शुरू कर दिए। अपने बालों तक को काट डाला, जस्ट टू चैलेंज दी गवर्नमेंट। इतना ही नहीं, स्कूल गर्ल्स ने "डेथ टू डिक्टेटर" के स्लोगंस तक रेज किए।


इस प्रोटेस्ट के तुरंत बाद एक दूसरा प्रोटेस्ट भी शुरू हो गया, कॉल्ड "क्लेरिक टर्बन ऑफ प्रोटेस्ट"। औरतों को सपोर्ट करने के लिए ईरान के युवाओं ने भी एक यूनिक प्रोटेस्ट मेथड चुना, जहां पर वो ईरान के क्लेरिक्स — मतलब कि रिलीजियस लीडर्स — के टर्बन को गिरा देते थे, टू शो देयर प्रोटेस्ट अगेंस्ट ऑर्थोडॉक्स इस्लामिक वैल्यूज़। एक्चुअली में, ईरान में सिर्फ रिलीजियस लीडर्स को ही टर्बन पहनना अलाउड होता है, व्हिच मेक्स दिस प्रोटेस्ट इवन मोर इंपोर्टेंट क्योंकि यह बगावत सीधा पीपल इन द पोजीशन ऑफ पावर के साथ हो रही थी। तीसरा सेगमेंट ईरानियन सोसाइटी का जिसने भी बढ़-चढ़कर प्रोटेस्ट में पार्टिसिपेट किया, वो थे ईरानियन स्टूडेंट्स। उन्होंने अपने एकेडमिक फ्रीडम के लिए गवर्नमेंट के खिलाफ मोर्चा शुरू किया। बेसिकली आज तक ईरान की गवर्नमेंट ही ये डिसाइड करती है कि स्टूडेंट्स क्या पढ़ेंगे, और वहां इट इज कंपलसरी फॉर स्टूडेंट्स कि वो फंडामेंटलिस्ट रिलीजियस टीचिंग्स को पढ़े। और इसी के अगेंस्ट ही इन स्टूडेंट्स ने प्रोटेस्ट किया।


अब इन्हीं प्रोटेस्ट में जुड़ने वाला चौथा सेगमेंट था लेबर्स का। वहां के लेबरर्स ने भी बेटर वर्किंग कंडीशंस, हायर वेजेस, और दी राइट टू फॉर्म इंडिपेंडेंट यूनियंस जैसे बेसिक नीड्स के लिए गवर्नमेंट के अगेंस्ट अपने वॉइस रेज किए। इन प्रोटेस्ट ऑफ हाई प्राइसेस, लैके ऑफ परचेसिंग पावर एंड गवर्नमेंट करप्शन — इन एडिशन टू डिमांडिंग दे रिलीज ऑफ अदर एक्टिविस्ट वर्कर्स। आज ईरान में सिचुएशन कुछ ऐसी हो गई है कि लोग इस्लाम को उनके ऊपर थोपे जाने से इतने नाराज हो गए हैं कि उन्होंने मस्जिद तक जाना छोड़ दिया है। जिसकी वजह से पिछले कुछ सालों में ईरान में 75,000 मॉस्क्स में से 50,000 मॉस्क बंद हो गए हैं। यस, एक हार्ड कोर मुस्लिम देश में वहां के लोगों ने मॉस्क जाना बंद कर दिया है। और यह कोई यहां वहां की खबर नहीं है, बल्कि बिल्कुल ऑफिशियल है। असेंबली ऑफ एक्सपर्ट्स — बेसिकली वो बॉडी जो ईरान के सुप्रीम लीडर को अपॉइंट करती है — उसके ही एक मेंबर, दोलाबी ने एड्रेस किया और कहा कि जबरदस्ती रिलीजन को थोपने की वजह से ही लोगों में रिलीजन छोड़ने की भावना आ रही है, वो मजबूर हो रहे हैं।


और इसीलिए ही तो आज ईरानियन लोगों ने लिबरल थॉट्स रखने वाले पॉलिटिशियन को चुना इंस्टेड ऑफ रिलीजियस फंडामेंटलिस्ट। अब बात करते हैं कि इस नए शिफ्ट से इंडिया पर क्या इंपैक्ट पड़ेगा? क्या इंडिया का फायदा होगा या इंडिया का नुकसान? वेल, अगर ईरान की नई लिबरल गवर्नमेंट आती है ना, तो यह इंडिया के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है। क्योंकि इंस्टेंट प्रॉफिट की अगर बात करें, तो इससे फ्यूल प्राइसेस काफी हद तक सस्ते हो जाएंगे क्योंकि हिस्टोरिकली यह प्रूवन है कि ईरान ने इंडिया को हमेशा ही सस्ते रेट पर ऑयल प्रोवाइड किया है।


और अगर लॉन्ग टर्म फायदे की भी हम बात करें, तो आप सब ने आज से कुछ ही दिनों पहले यह सुना होगा कि इंडिया को ईरान के चाबहड़ पोर्ट का एक्सेस मिल गया है। इस मीन्स कि हम ऑलरेडी इस इतने बड़े रीजन में बिना किसी इंटरप्शन के ट्रेड कर सकेंगे। दूसरा मेजर बेनिफिट — ईरान में एक डेमोक्रेटिक और लिबरल गवर्नमेंट आने की वजह से — काफी टाइम से रुके हुए इंडिया के लिए सबसे प्रॉफिटेबल रश-अस्त्र रेलवे प्रोजेक्ट में भी स्पीड आ जाएगी। बेसिकली इस प्रोजेक्ट से होगा यह कि हम यूरेशिया में आसानी से ट्रेड कर पाएंगे पाकिस्तान और सुएज कैनाल को इजीली बायपास करके, और हमें बाल्टिक कंट्रीज का एक्सेस मिल जाएगा | अगर आप इस मैप में देखोगे, तो इतने बड़े डिस्टेंस को अवॉयड करके हम 45 से 60 डेज में कवर होने वाले ट्रेड रूट को सिर्फ 25 से 30 डेज में ही कवर कर लेंगे — और वो भी 30% लेस कॉस्ट में। जिससे आने वाले टाइम में इंडिया चाइना की तरह दुनिया का एक बहुत ही अच्छा और रिलायबल सप्लाई चेन पार्टनर बन सकता है।


लेकिन ऑफ कोर्स, इन सब चीजों को कुछ वक्त के लिए साइड में रखते हुए — अगर ईरान में लिबरलाइजेशन आता भी है — तो यह ईरानियन लिबरलाइजेशन कितने समय तक टिक पाएगा? क्योंकि आज से सिर्फ 45 इयर्स पहले ही ईरान ने खुद ही तो एक लिबरल हेड ऑफ स्टेट को उखाड़ फेंका था और वहां के लोगों ने ही तो खोमेनी जैसे कंजर्वेटिव लीडर के चक्कर में फंसकर खुद की फ्रीडम नीलाम कर दी थी।



सो, द क्वेश्चन इज — आपको क्या लगता है? क्या यह पैटर्न आगे भी रिपीट होगा और कुछ साल बाद यह लिबरल गवर्नमेंट वापस से गिर जाएगी? और उससे पहले, तो आपको क्या लगता है कि ईरान में यह लिबरलाइजेशन का वेव आखिर आ भी पाएगा कि नहीं? क्या आज के ईरान का जो सुप्रीम लीडर है, अली खोमेनी — वह पासा पलट कर सकता है? और फाइनली, अगर बात रही रेडिकलाइजेशन की — तो वह किसी भी कंट्री को कितना नुकसान पहुंचा सकता है, यह इंडिया ने भी देखा है। सो, ईरान के फ्यूचर के बारे में आपका क्या ख्याल है? नीचे कमेंट्स में जरूर टाइप करना, I would love to know. Take care, see you next time. जय हिंद!


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