Donald Trump VS Modi: दोस्त बने दुश्मन, गद्दार ट्रंप भारत vs ट्रंप: अमेरिका की चुनौती में छिपा नया अवसर"
कभी नरेंद्र मोदी और डॉनल्ड ट्रंप हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रंप जैसे मंचों पर एक दूसरे की तारीफ के पुल बांधते थे। मोदी ट्रंप को अपना सच्चा फ्रेंड कहते थे और डॉनल्ड ट्रंप नरेंद्र मोदी को महान नेता, सख्त सौदेबाज बताया करते थे। इन दोनों को जोड़ने वाली समानताएं भी थीं — दोनों हार्डकोर नेशनलिस्ट, मजबूत नेतृत्व और देश को पहले रखने वाले। लेकिन क्या वही समानताएं आज इन दोनों के बीच में दूरियां बढ़ा रही हैं? क्या नरेंद्र मोदी और डॉनल्ड ट्रंप अब धीरे-धीरे दुश्मनी की कगार पर जा रहे हैं? पहले एच1बी वीजा और फिर व्यापार शुल्क को लेकर ट्रंप का "भारत बहुत टैक्स लेता है" जैसा बयान, उसके बाद इंडिया-पाकिस्तान वॉर पर क्रेडिट वॉर — और अब Apple का विवाद। लोग कह रहे हैं, भाई साहब जब दो दोस्त दुश्मन बनते हैं तो दुश्मनी बड़े गहरे रंग की होती है।
लेकिन ये सारी बातें क्यों हो रही हैं और आज क्यों हो रही हैं? क्योंकि यह घटनाएं तो बता रही हैं कि डॉनल्ड ट्रंप का भारत के प्रति रवैया बदल रहा है। लेकिन आज जब डॉनल्ड ट्रंप ने Apple के सीईओ टिम कुक से कहा कि भारत में फैक्ट्री मत बनाओ, भारत अपना ख्याल खुद रख सकता है, तो दुनिया को यह एहसास हुआ कि यह सिर्फ व्यापारिक सलाह नहीं थी, बल्कि एक राजनैतिक और रणनीतिक संदेश था। लेकिन सवाल यह है कि वो डॉनल्ड ट्रंप जो नरेंद्र मोदी को अपना सबसे अच्छा हितैषी, अपना दोस्त बता रहे थे, वो अचानक से मोदी से या भारत से इतने परेशान क्यों होने लगे? क्या इसके पीछे की वजह इंडिया-पाकिस्तान वॉर में अमेरिका को क्रेडिट ना मिलना, डॉनल्ड ट्रंप की फजीहत होना, उनका ईगो हर्ट होना या इंडिया का अब खुद फैसला लेना है? क्या है जो ट्रंप को इतना परेशान कर रहा है? और क्यों ट्रंप इतना बदल रहे हैं? और अगर ट्रंप बदल रहे हैं, अमेरिका बदल रहा है, तो भारत इससे कैसे निपटेगा? सब समझाएंगे, लेकिन पहले ट्रंप की समस्या को समझने की कोशिश करते हैं।
अब डॉनल्ड ट्रंप की हाल फिलहाल में जो सबसे बड़ी समस्या है वो यह है कि डॉनल्ड ट्रंप को ऐसा लगता है कि नोबेल पीस प्राइज चाहिए था। और डॉनल्ड ट्रंप कोशिश कर रहे थे। पिछली बार भी जब ट्रंप आए थे तो वो नॉर्थ कोरिया तक गए थे, यह सोचकर कि नॉर्थ कोरिया को दुनिया में शामिल करवा लेंगे, पीस करवा देंगे। मैसेज जाएगा — अमेरिका-नॉर्थ कोरिया की दोस्ती का, पहले राष्ट्रपति जो उनकी जमीन पर उतरे — और नोबल पीस मिल जाएगा। बट नहीं मिला। इस बार लगा कि चलो, नॉर्थ कोरिया ना सही, इंडिया-पाकिस्तान सही। लेकिन चौबे जी बनने गए थे, वो दुबे भी नहीं बन पाए। कैसे? 10 मई 2025 को डॉनल्ड ट्रंप ने खूब गाजेबाजे के साथ ऐलान किया कि जी हमने सीजफायर करवा दिया। उसके बाद भी चार दिन में डॉनल्ड ट्रंप चार बार कह चुके हैं कि मैं, मैं इंडिया-पाकिस्तान को रोका हूं, व्यापार के लिए वॉर को रोका हूं — मैं!
लेकिन भारत ने इनके दावों को खारिज कर दिया। और इसके बाद डॉनल्ड ट्रंप की डिप्लोमेसी का ऐसा जनाजा निकला कि उनकी टीम शर्म से जमीन में गड़ गई। वो समझ नहीं पा रहे कि क्या बोले। इस डॉनल्ड ट्रंप की जो सीजफायर की मध्यस्थता थी वो भी इतिहास के सबसे फ्लॉप और शर्मनाक तमाशों में तब्दील हुई थी। TikTok सीजफायर — लोगों ने कह दिया था। क्योंकि जैसे ही डॉनल्ड ट्रंप ने ऐलान किया, उसके थोड़ी देर बाद पाकिस्तान से गोला चलने लगा, इंडिया ने भी गोला मारना शुरू कर दिया। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि भैया ये कैसा सीजफायर? और फिर भारत ने कहा भी कि वॉर, वॉर नहीं रोका है — हमने सिर्फ पॉज़ लिया है। और आप लोग जानते हो, वॉर में काहे पॉज़ होता है?
कश्मीर को लेकर भी डॉनल्ड ट्रंप ने कहा था कि मैं हल निकलवा दूंगा, I will solve this issue. फिर नोबेल प्राइज दिख रहा था उन्हें। लेकिन भारत बोला कि वो कश्मीर जो आपके लिए मसला है, वो हमारे घर का मामला है। और घर के मामले में दोस्त भी इंटरफेयर नहीं करते। बात होगी तो POK पर होगी — वो जो पाकिस्तान को पैसा दे रहे हैं, उस पर होगी, आतंकवाद पर होगी। अब सवाल यह है कि क्या यह बातें डॉनल्ड ट्रंप की छवि को नुकसान पहुंचाई? क्या उनके अहंकार को ठेस पहुंचाई? मतलब फिर मैं कह रहा हूं — आप समझिए इस बात को — कि उत्तर कोरिया के किम जोंग से हाथ मिलाकर वो ग्लोबल पीस लीडर बनने चले थे। लगा था नोबेल प्राइज ले लेंगे, वहां फंसे तो इंडिया-पाकिस्तान में शांति कथा करने लगे। लेकिन कहीं नहीं रहे वो।
इसके अलावा डॉनल्ड ट्रंप जो हैं, वो इंटरनेशनल स्तर पर अपने आप को मोस्ट डॉमिनेटिंग लीडर के तौर पर पेश करते हैं। उनका कार्यकाल जो है, यह आखिरी कार्यकाल है। और डॉनल्ड ट्रंप शायद चाहते हैं कि इस कार्यकाल में जितनी चर्चा हो, वो डॉनल्ड ट्रंप को लेकर हो। लेकिन भारत का जब स्टैंड स्ट्रॉन्ग रहा, तो इंडिया-पाकिस्तान वॉर में चर्चा तो मोदी जी की हुई — कि भाई चढ़ के मारे। क्या डॉनल्ड ट्रंप को ये सारी चीजें अखर गई? ये तो बात हो गई पर्सनल ईगो की। अब बात करते हैं अमेरिका को लेकर। टीम कुक ने दरअसल यह कह दिया था कि अमेरिका में जो आज iPhone बिकते हैं, वो 50% इंडिया में बन रहे हैं। अब इंडिया के लिए तो यह Proud Moment है। लेकिन डॉनल्ड ट्रंप के लिए — टिंगटोंग — खतरे की घंटी थी।
ट्रंप को शायद इस बात का डर रहा होगा कि यार अगर Apple का CEO ये कह रहा है तो दुनिया के जो बड़े ब्रांड हैं उनका रुख भी तो बदलेगा। और अगर सब भारत की तरफ मुड़ गए तो क्या अमेरिका पर ये असर पड़ेगा क्योंकि इस बार जब से डॉनल्ड ट्रंप लौटे हैं, तब से "America First" की वो बातें खूब कर रहे हैं। ऐसे में एक अमेरिकी आइकॉन कंपनी जो कभी चीन पर निर्भर थी, अब भारत को निर्माण का हब बना रही है — क्या यह परेशान करने वाली चीज है? क्या "Make in India" जब "Make in America" के सामने अपनी पहचान बना रहा है — तो यह उनको परेशान कर रहा है क्या
अब Apple का जो भारत में निवेश है वो भारत की अर्थव्यवस्था को तो मजबूत कर रहा है, ग्लोबली भी लोगों में एक मैसेज दे रहा है। ऐसे में डॉनल्ड ट्रंप की "America First" नीति जो है — वो इसको परेशान कर सकती है।
एक कहानी है...
हालांकि भारत कमजोर नहीं है — क्योंकि भारत के पास आबादी बहुत बड़ी है। वही आबादी जो कई बार कमजोरी लगती है, कई बार ताकत बन जाती है। बाजार बहुत बड़ा है। इंडिया में आज हम जैसे कितने लोग हैं जो iPhone का इस्तेमाल कर रहे हैं?
अब अगर Apple को लेकर कोई तामझाम करते हैं डॉनल्ड ट्रंप तो इंडियन गवर्नमेंट भी कारवाई कर सकती है Apple पर बैन लगा सकती है नियम सख्त कर सकती है और टेरिफ बढ़ा सकती है अमेरिका को भी नुकसान हो सकता है तो ऐसे में रिसेंट में कुछ होगा ऐसा तो लगता नहीं है लेकिन डॉनल्ड ट्रंप ने ये जो बयान दिया है यह एक्चुअली एप्पल को लेकर केवल नहीं है यह इंटरनेशनल बड़ी कंपनियों को लेकर है कि भारत में निवेश करने से पहले आप अमेरिका को प्रायोरिटी दो और यहीं से सवाल उठ जाता है कि डॉनल्ड ट्रंप भारत के अब दोस्त हैं या दुश्मन बन गए हैं।
दोनों घटनाओं को लेकर चाहे वो इंडिया पाकिस्तान वॉर वाली घटना हो या जो एप्पल को लेकर उन्होंने किया। देखो डॉनल्ड ट्रंप अपना हित सोचते हैं उसमें कोई गलत नहीं है लेकिन जब भारत अपना हित सोचता है तो डॉनल्ड ट्रंप को बात बुरी लग जाती है, वह बात ईगो पे ले लेते हैं। वो चाहते हैं कि इंडिया उन्हें कहे कि आप बड़े आदमी हो जैसे पाकिस्तान पैर छूता रहता है कि मालिक नमस्ते, सुबह निकलो गुड मॉर्निंग सर, शाम को पैर छू के मालिक नमस्ते। इंडिया ये नहीं कह रहा और इसी वजह से ट्रंप की बेइज्जती हुई थी।
नरेंद्र मोदी को वो दोस्त मानते थे। उन्होंने कह दिया बड़बोलेपन में भारत के पीएम के अनाउंसमेंट के पहले उन्होंने अनाउंसमेंट कर दी लेकिन इसके बाद जो कुछ हुआ वो परेशान करने वाला था। हालांकि बहुत सारे लोगों को यह भी लगता है कि डॉन्ड ट्रंप ने मोदी की दोस्ती का फायदा उठा लिया क्योंकि अगर ऑपरेशन सिंदूर में अमेरिका इंटरफेयर ना करता तो भारत पाकिस्तान को और ठोकता और परेशान करता। और अगर भारत ऑपरेशन सिंदूर को अंतिम जाल तक ले जाता तो नरेंद्र मोदी की छवि इस सदी के सबसे ताकतवर नेता के तौर पर बन जाती। आप लोगों ने भी नरेंद्र मोदी को लेकर सवाल उठाए होंगे जब सीज फायर हुआ था क्योंकि इंडिया शॉक हो गया था कि यार ये सीज फायर क्यों हुआ हम तो एज में थे।
और यहीं से कईयों का मानना है कि डॉनल्ड ट्रंप ने बीच में कूदकर सीज फायर करवाकर मोदी को लार्जर दन लाइफ बनने से रोकने की कोशिश की। जल्दबाजी में खुद ढोल पीट कर ऐलान कर मोदी का क्रेडिट छीनने की कोशिश की। हालांकि मोदी जी की किस्मत जो है वो भगवान अलग पेन से लिखे हैं। पाकिस्तान उसके बाद गोला बारूद लगाने लगा भारत को मौका मिल गया कहने का कि काहे का सीज फायर डोनाल्ड ट्रंप कह रहे हैं देख लो और वो गोली दागेगा तो हम गोला दागेंगे। और उसके बाद फिर इंडिया ने स्टेटमेंट दे दिया कि वॉर खत्म नहीं हुई है। कश्मीर ने पीओके की बात करेंगे और फिर डॉन्ड ट्रंप के मजे ले लिए गए लेकिन ये सारी बातें डॉनल्ड ट्रंप को परेशान कर रही थी।
लेकिन सवाल यह भी कि एक शुरुआत तो डॉनल्ड ट्रंप ने की है हमारी दोस्ती का नाजायज फायदा डॉन्ड ट्रंप ने उठाया। एक और घटना है जिसको लेकर डॉन्ड ट्रंप नाराज हो सकते हैं। इंडिया के पास जितने हथियार हैं वो ज्यादातर हथियार रशिया से खरीदे गए हैं और पाकिस्तान जिस F16 का इस्तेमाल करता है वो अमेरिका का हथियार है। 2019 में बालाकोट स्ट्राइक के बाद भी वायुसेना ने पाकिस्तान के अमेरिकी F16 को हवा में उड़ाया था और इस बार भी दावा चल रहा है कि जो पाकिस्तान का पायलट मारा गया है जिसके जनाजे में शबाज शरीफ गए थे वो F16 में था। तो उनका एक F16 जो है वो और इदम गायत्रीदम नमम हो गया है।
अब F16 जो है वो अमेरिका की श्रेष्ठता का प्रतीक रहा है और जब इसके नष्ट होने की खबर आती है और पिछली बार तो हमारे हल्के-फुल्के जहाजों ने इसे नष्ट किया था तो यह पाकिस्तान के लिए अमेरिका के लिए शर्मिंदगी की वजह बना है। 2019 में पहली बार F16 को सार्वजनिक रूप से बेइज्जत होना पड़ा था और इस बार भी कहानी है क्योंकि F16 अमेरिका के लिए केवल एक फाइटर जेट नहीं है। और यह फाइटर जेट की हार नहीं थी यह अमेरिका के हथियारों की साख पर सवाल था। जैसे S400 को लेकर जब खबर आई थी तो रशिया में कंपनियों के जो स्टॉक्स थे, वॉर सामान हथियार बेचने वाले, गिरने लगे थे। बाद में मोदी जी गए खड़े हुए, दिखाया S400 जिंदा है और पूछे कि कहो भाई पाकिस्तान तुम भी आओगे तो ठीक हुआ बैलेंस।
ऐसे ही F16 अमेरिका का गुरूर है। अमेरिका ट्रंप की डिफेंस लॉबी के लिए सीधा धक्का था और यहीं से शायद अमेरिका को और टच हो गया क्योंकि इंडिया अब खुद के भी हथियार बना रहा है। तो क्या ट्रंप जो है वो इंडिया को चाइना के तौर पर देख रहे हैं? मतलब चाइना के तौर पर कहने से मतलब जैसे चाइना इंडिपेंडेंट होने लगा आज से कुछ साल पहले। अब क्या उनको लग रहा है क्योंकि डॉनल्ड ट्रंप ने कहा है कि भारत अपना ख्याल खुद रख सकता है। भारत की तेजी से बढ़ती वैश्विक स्थिति की स्वीकृति हुई है, उससे दुनिया में डर भी गया है।
अमेरिका देख रहा है कि चीन के बाद भारत सबसे तेजी से ग्रो कर रहा है। डॉन्ड ट्रंप ने जब कहा कि “डोंट बिल्ट इन इंडिया” तो यह केवल आर्थिक चिंता नहीं थी यह भय भी था। भय था कि इंडिया भी तो वही नहीं कर रहा है जो चीन कर रहा था जैसे ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनना, टेक्नोलॉजी में इंडिपेंडेंट होना, इंटरनेशनल कूटनीति में इंडिपेंडेंट होना। भारत वो देश नहीं है जो अमेरिका के इशारों पर चलेगा। भारत इंडिपेंडेंट पॉलिसी लेकर चल रहा है और यह बात भी अमेरिका को परेशान कर रही है। इसीलिए डॉन्ड ट्रंप ने इशारोंशारों में कह दिया भारत अपना ख्याल खुद रख सकता है। यह बहुत गहरी बात है। सोचिएगा क्योंकि कोई भी जब आगे बढ़ता है तो सबसे पहले बुरा रिश्तेदारों को ही लगता है।
और डॉन्ड ट्रंप वही रिश्तेदार है जब तक उनके साथ रहोगे चाचा नमस्ते तब तक तो कहेंगे हां बेटा खुश हो, खुश हम तुम्हारा ख्याल रखेंगे। लेकिन जब लड़का खुद बड़ा हो रहा है तब डॉनल्ड ट्रंप कहेंगे नहीं, कल को बड़ा हो गया तो हमारे बराबर बैठेगा, अच्छा थोड़ी ना लगता। अब सवाल यह है कि अगर भारत इस तरह से आगे बढ़ रहा है तो फिर भारत को अब क्या करना पड़ेगा क्योंकि डॉन्ड ट्रंप तो मानने वाले हैं नहीं। अमेरिका तो हिपोक्रेट है। हां हिपोक्रेट ही तो है। अभी डोनाल्ड ट्रंप जिस क़तर के यहां गए थे 2017 में उसी को आतंकवाद का फंडर कह रहे थे और इस बार 400 मिलियन का प्राइवेट जेट खरीद लिए, लॉयल फ्रेंड कह रहे।
हैं सीरिया के जिस नेता को आतंकवादी कह रहे थे उसे डॉन्ड ट्रंप यंग अट्रैक्टिव गाय कह रहे थे वि स्ट्रांग पास्ट हमारे यहां जिसे घूंस लेना कहते हैं अमेरिका के यहां उसे दोस्ती डिप्लोमेसी कहते हैं ये जो डोन्ड ट्रंप को जहाज मिला है यह घूस है आसान शब्दों में अगर समझाएं तो वो दूसरी यारी में नहीं दिया गया है घूस दिया गया है जिससे चार काम उनका हो जाए और डॉन्ड ट्रंप का एजेंडा जो है धीरे-धीरे उस हिसाब से बदल रहा है अब मुस्लिम देशों को लेकर उनमें वो तल्खी वो सख्ती नहीं है लेकिन ये तो चलो उनका अपना अमेरिका का स्टैंड इससे हमारा क्या लेना देना हमारा पॉइंट ये है कि डॉन्ड ट्रंप को दिक्कत क्या है तो एक दिक्कत तो यह है कि फिलहाल राइज ऑफ इंडिया भारत अपने डिफेंस को स्ट्रांग कर रहा है टेक मार्केट में सीधा कंपटीशन बन चुका है भारत में पॉलिसीज जो है वो भारत को ध्यान में रखकर बनाई जा रही हैं डॉनल्ड ट्रंप नहीं चाहते कोई और चर्चा हो उनका लास्ट कार्यकाल है मोदी जी तो अगली बार भी आ जाएंगे हो सकता है हो सकता है ना आए हो सकता है आ जाए लेकिन डॉनल्ड ट्रंप तो चाहेंगे तो भी नहीं आ पाएंगे अमेरिका में तो दो ही बार राष्ट्रपति बन सकता है आदमी ऐसे में उनके प्रॉब्लम है वो देश की प्रॉब्लम भी हो सकती है ईगो की प्रॉब्लम भी हो सकती है रणनीतिक असुरक्षा की प्रॉब्लम भी हो सकती है और यह अब दिख रहा है खुलकर अमेरिका में चुनाव भी होने वाले हैं 2026 में अपनी पार्टी को बहुमत बना के भी रखना है नौकरियां की बात उन्होंने कही है अमेरिका को सुपर पावर अमेरिका फर्स्ट ये सारी चीजें डॉनल्ड ट्रंप की रही हैं
अब सवाल है भारत को क्या चाहिए क्योंकि ट्रंप भारत के प्रति जटिल है उनके अपने हिसाब किताब है भारत क्या कर सकता है देखो भारत के सामने मुश्किलें तो हैं तभी तो शायद कंगना रणावत ने ट्वीट किया था तो नड्डा जी ने हटवा दिया इसी वजह से क्योंकि भारत डायरेक्टली अमेरिका से लड़ाई करना नहीं चाहता बट भारत के लिए अपॉर्चुनिटी भी है अगर ट्रंप जैसे नेता कंपनियों को भारत से दूर रहने की सलाह दे रहे हैं तो भारत को भी इंडिपेंडेंट होना चाहिए अगर डॉन्ड ट्रंप Apple से कह रहे हैं कि निवेश ना करो तो भारत भी Amazon Google Facebook Apple जैसे ब्रांड पर सख्त नियम लगा सकता है ये उनको ही परेशान करेगा हमें डिफेंस में अपने आप को और मजबूत करना पड़ेगा सेमीकंडक्टर बनाने होंगे 5G नेटवर्क को और स्ट्रांग करना होगा स्वदेशी हथियार बनाने होंगे अमेरिका पर डिपेंडेंसी हमें कम करनी होगी अब समय आ गया है कि भारत नीतियां बनाए ग्लोबल गठबंधन करें ताकि ट्रंप या बाइडन जैसे किसी नेता का मोहताज ना रहना पड़े भारत केवल साझेदार नहीं बल्कि नीति निर्माता बने आत्मनिर्भर भारत जो हम कहते हैं वसुदेव कुटुंबकम की छवि को और प्रचारित करें और वैश्विक मन पर एक बड़ी शक्ति के तौर पर उभरे बाकी ट्रंप का जो विरोध है वो बहुत हद तक व्यक्तिगत है अहंकार से भरा हुआ है आर्थिक कंपटीशन के तौर पर है असुरक्षा का भाव दिखता है भारत लॉन्ग टर्म लेके सोच रहा है अमेरिका भी अमेरिका फर्स्ट सोच रहा है हम भी इंडिया फर्स्ट सोच रहे हैं तो भारत के लिए कुल मिलाकर एक नया अवसर है इस आपदा को अवसर में तब्दील किया जाए और वक्त है कि भारत ना केवल एक साझेदार बल्कि जैसा कि हमने कहा नीति निर्माता और वैश्विक एक बड़ी ताकत के तौर पर उभरे आत्मविश्वास के साथ अगर इस ताकत को हम समझेंगे अपनाएंगे तो अच्छे दिन जो है वो जरूर आएंगे
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